SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 156
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विधिपक्ष अपरनाम अंचलगच्छ (अचलगच्छ) का संक्षिप्त इतिहास . १५२ संकेत सूची जै० ले०सं० : जैनलेखसंग्रह, भाग १-३, संपा० संग्राहक-श्री पूरनचन्द नाहर, कलकत्ता १९१८, १९२७, १९२९ ई० । प्रा०ले० सं० : प्राचीनलेखसंग्रह, सम्पा० - मुनि विद्याविजय जी, भावनगर, १९२९ ई०। जे० धा०प्र०ले०सं० : जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १-२; सम्पा०- आचार्य बुद्धिसागरसूरि, श्री अध्यात्म ज्ञान प्रसारक मण्डल, पादरा १९२४ ई०। अ०प्र००ले०सं० : अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंग्रह, (आबू-भाग ५) संपा० - मुनि जयन्त विजय जी, यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, भावनगर, वि०सं० २००५। बी० जे०ले०सं० : बीकानेरजैनलेखसंग्रह, सम्पा०- अगरचन्द नाहटा, भंवरलाल नाहटा, कलकत्ता १९५५ ई० । जै० धा०प्र०ले० : जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, सम्पा०– मुनि कान्तिसागर जी, जिनदत्तसूरि ज्ञान भंडार, सूरत १९५० ई०। श्री०प्र० ले०सं० : श्रीप्रतिमालेखसंग्रह, सम्पा०-- दौलतसिंह लोढ़ा ‘अरविन्द', यतीन्द्र साहित्य सदन, धामणिया १९५५ ई० । प्र०ले०सं० : प्रतिष्ठालेखसंग्रह, सम्पा०– महोपाध्याय विनयसागर, कोटा १९५३ ई०। रा०प्र०ले०सं० : राधनपुरप्रतिमालेखसंग्रह, सम्पा०- मुनि विशाल विजय, यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, भावनगर १९६० ई०। अं०ले०सं० अंचलगच्छीयलेखसंग्रह, सम्पा०- श्रीपार्श्व, श्री अखिल भारतीय अचलगच्छ (विधिपक्ष) श्वेताम्बर जैन संघ, झवेरी मेन्शन, पहला माला, ११४, केशव जी नायक रोड, मुम्बई १९७१ ई०। श०गि०द० : शजयगिरिराजदर्शन, सम्पा०- मुनि कंचनसागर, श्रीआगमोद्धारक ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ५९, कपडवज १९८२ई०। श०० शत्रुजयवैभव, सम्पा०- मुनि कान्तिसागर, जयपुर, १९९० ई०। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525037
Book TitleSramana 1999 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy