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विधिपक्ष अपरनाम अंचलगच्छ (अचलगच्छ) का संक्षिप्त इतिहास
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संकेत सूची जै० ले०सं० : जैनलेखसंग्रह, भाग १-३, संपा० संग्राहक-श्री पूरनचन्द
नाहर, कलकत्ता १९१८, १९२७, १९२९ ई० । प्रा०ले० सं० : प्राचीनलेखसंग्रह, सम्पा० - मुनि विद्याविजय जी, भावनगर,
१९२९ ई०। जे० धा०प्र०ले०सं० : जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १-२; सम्पा०- आचार्य
बुद्धिसागरसूरि, श्री अध्यात्म ज्ञान प्रसारक मण्डल, पादरा
१९२४ ई०। अ०प्र००ले०सं० : अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंग्रह, (आबू-भाग ५)
संपा० - मुनि जयन्त विजय जी, यशोविजय जैन
ग्रन्थमाला, भावनगर, वि०सं० २००५। बी० जे०ले०सं० : बीकानेरजैनलेखसंग्रह, सम्पा०- अगरचन्द नाहटा,
भंवरलाल नाहटा, कलकत्ता १९५५ ई० । जै० धा०प्र०ले० : जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, सम्पा०– मुनि कान्तिसागर
जी, जिनदत्तसूरि ज्ञान भंडार, सूरत १९५० ई०। श्री०प्र० ले०सं० : श्रीप्रतिमालेखसंग्रह, सम्पा०-- दौलतसिंह लोढ़ा ‘अरविन्द',
यतीन्द्र साहित्य सदन, धामणिया १९५५ ई० । प्र०ले०सं० : प्रतिष्ठालेखसंग्रह, सम्पा०– महोपाध्याय विनयसागर,
कोटा १९५३ ई०। रा०प्र०ले०सं० : राधनपुरप्रतिमालेखसंग्रह, सम्पा०- मुनि विशाल विजय,
यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, भावनगर १९६० ई०। अं०ले०सं०
अंचलगच्छीयलेखसंग्रह, सम्पा०- श्रीपार्श्व, श्री अखिल भारतीय अचलगच्छ (विधिपक्ष) श्वेताम्बर जैन संघ, झवेरी मेन्शन, पहला माला, ११४, केशव जी नायक रोड, मुम्बई
१९७१ ई०। श०गि०द० : शजयगिरिराजदर्शन, सम्पा०- मुनि कंचनसागर,
श्रीआगमोद्धारक ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ५९, कपडवज
१९८२ई०। श००
शत्रुजयवैभव, सम्पा०- मुनि कान्तिसागर, जयपुर, १९९० ई०।
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