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________________ १२ : श्रमण/अप्रैल-जून/१९९९ वस्तुतः देखा जाय तो जिस चीज की उपयोगिता बढ़ जाती है उसकी संख्या में भी वृद्धि हो जाती हैं। लक्ष्य एक होने पर भी मार्ग अलग-अलग बन जाते हैं और उनके अलग-अलग निर्माता-संस्कर्ता हो जाते हैं। इसी प्रकार प्राचीनकाल से अब तक ध्यान भी बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ है। जिस दिन से मनुष्य ने ध्यान करना सीखा, उसे कुछ मिला। उसे महसूस हुआ कि ध्यान भी उपयोगी है, मूल्यवान है। जब मूल्य होता है तो उसके साथ उसकी अर्थवत्ता भी बढ़ जाती है। जब कभी भी ध्यान प्रचलन में आया होगा तो उसकी एक ही शाखा रही होगी। किन्तु समय परिवर्तन के साथ-साथ उसकी अनेक शाखाएं बनती जा रही हैं। फलत: आज सैकड़ों ध्यान पद्धतियां चल रही हैं, लेकिन इस आलेख में हम केवल प्रेक्षाध्यान और भावातीत ध्यान के बारे में ही चर्चा करेंगे। ___भावातीत ध्यान को संक्षेप में टी०एम० (Transendental Meditation) भी कहा जाता है। इसके संस्कर्ता महर्षि महेश योगी हैं और प्रेक्षाध्यान के संस्कर्ता हैंयुवाचार्य महाप्रज्ञ (वर्तमान आचार्य)। भावातीतध्यान और प्रेक्षाध्यान इन दोनों पद्धतियों को तुलनात्मक दृष्टि से देखें। भावातीतध्यान का वैज्ञानिक साहित्य तो बहुत है; किन्तु इसके मूल स्वरूप को बताने वाला साहित्य बहुत कम है। भावातीत ध्यान में एक मन्त्र का प्रयोग कराया जाता है, जो बीस मिनट तक चलता है। मन्त्र की एक निश्चित विधि है। जिसका जप करते-करते व्यक्ति भावातीत हो जाता है, भावना से अतीत होकर गहरी एकाग्रता में चला जाता है। मन्त्र-जप के प्रयोग का नाम ही भावातीत ध्यान रखा गया है।४ भावातीत ध्यान को निर्विकल्प ध्यान भी कहा जा सकता है। किन्तु प्रश्न होता है कि क्या जप द्वारा यह सम्भव है, क्योंकि जप केवल उच्चारण ही नहीं है बल्कि एक मानसिक प्रक्रिया है। जब हम ध्यान की तरफ जप को ले जाते हैं तो उसे विराम देने की जरूरत होती है। विराम की स्थिति में एक मन्त्र को गिनने में एक मिनट, दो मिनट भी लग सकते हैं। जितना विराम देंगे, अन्तराल बढ़ता चला जायेगा। शून्य में रहना या शून्य को जानना ही अधिक महत्त्वपूर्ण होता है। हम श्वास को भी देखते हैं। श्वास भीतर गया, वह बाहर आने वाला है। श्वास के आने और जाने के बीच के अन्तराल को पकड़ना ही मुख्य ध्येय है। ध्यान के हर क्षण में शून्य को पकड़ना बहुत महत्त्वपूर्ण है। प्रत्येक क्रिया में विश्राम आवश्यक है। ध्यान और जप के साथ भी यह बात (विश्राम) लाग होती है। जप का महत्त्वपूर्ण क्षण होता है-खाली रहना। हम जितना अन्तराल देना सीखेंगे, उतना ही भावातीतध्यान सधता चला जायेगा। व्यक्ति भावातीत तभी बनता है जब वह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525037
Book TitleSramana 1999 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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