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भारतीय दर्शन में तनाव-अवधारणा के विविध-रूप अशांति, अस्वाद्य, दु:ख आदि सभी धारणाएं उद्दीपक और प्रतिक्रिया, तनाव के दोनों ही रूपों में समझी जा सकती हैं। अहित रूप में हिंसा अहित का उद्दीपक भी है और उसकी प्रतिक्रियात्मक अनुभूति भी है अथवा, कहें- आचरण संबंधी क्रिया-विशेषता भी है। यही बात अन्य धारणाओं के प्रति भी घटित होती है। भय
__ भय भी तनाव की अनुभूति का एक वर्णन है और जैनदर्शन में इसकी विस्तृत विवेचना हुई है। भय को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि जिससे हृदय में उद्वेग होता है, वह भय है- 'यदुद्यादुद्वेगस्तट्भयम्'। भय को भीति भी कह सकते
इहलोकभय
(१)
परलोकभय
(2)
अत्राणभय
आकस्मिकभय
भय के रूप
(३)
वेदनाभय (६)
अगुप्तिभय (४)
मरणभय
हैं- 'भीतिर्भयं'। भय के सात भेद बताए गए हैं।१२ 'इहपर-लोयत्ताणं अगुत्तिमरणं च वेयणाकस्मि भया।
चित्र (५) भय के भेद इहलोक-भय भय की वह आशंका है जिससे लोग व्यक्ति का कुछ बुरा कर सकते हैं। यह कुछ इस प्रकार का भय है इष्ट पदार्थ का मुझसे वियोग न हो जावे।
परलोक-भय अदृश्य का भय है। पता नहीं इस जीवन के बाद क्या होगा? परलोक का यही संशय सालता है।
अत्राण-भय वह है जिसमें व्यक्ति उस दुःखद अनुभूति से गुजरता है कि कहीं वे सभी वस्तुएँ जो सुरक्षा कर रही हैं, छीन न ली जाएं और व्यक्ति असुरक्षित रह जाए।