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________________ श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९९ सके। फलस्वरूप नारी-नारी की शत्रु बनी और दहेज न लाने के कारण गृहलक्ष्मी उत्पीडित हुई और हो रही है। अत: इस सामाजिक बुराई को दूर करने के लिये यदि हमारी माताएँ-बहिनें एक जुट होकर मुकाबला करें तो यह राक्षसी प्रथा समाप्त हो सकती है। बाल विवाह और बाल दीक्षा कुछ अपवादों को छोड़कर प्रायः समाप्त है। मृत्यु भोज के प्रति सामाजिक बन्धन नहीं रहा। विलायत (विदेश) यात्रा का निषेध और अंग्रेजी शिक्षा के ग्रहण से जैन संस्कृति के नष्ट होने की बातें बहुत पहले ही समाप्त हो चुकी हैं। जिन शासन देवी-देवताओं की पूजा और द्रव्यपूजा एवं भावपूजा तेरापंथ और बीसपंथ के पुराने मुद्दे हैं। निमित्त-उपादान, निश्चय-व्यवहार और क्रमबद्ध पर्याय आदि पर पुनश्चर्चा कानजी स्वामी की देन है, जिसे प्राय: सभी जानते हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि बीसवीं सदी के प्रारम्भ से ही जैन समाज में आन्दोलनों की बाढ़ रही है। ये आन्दोलन जैन समाज की जागरूकता के प्रतीक हैं। अन्यथा इनके चलाने में जो श्रम और आर्थिक क्षति होती है वह सर्व साधारण के लिये सम्भव नहीं है। ये आन्दोलन जैन समाज को निरन्तर जागरूक बनाये रखें तथा धार्मिक और । नीतिपरक दृष्टिकोण को अपनाते हुये अज्ञानता अथवा लोकरूढ़ि के कारण समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर कर समाज और देश का कल्याण करें, यही मंगल भावना सन्दर्भ १. पं० फूलचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री, वर्ण, जाति और धर्म, पृष्ठ १८. २. ब्र० पं० चन्दाबाईअभिनन्दनग्रन्थ, पृष्ठ १८-१९. ३. वर्ण, जाति और धर्म, पृष्ठ २५८. ४. वही, पृष्ठ २५९. ५. आचारानवद्यत्वं शुचिरूपस्कर: शारीरी च विशुद्धिः करोति शुद्रमपि देवद्विज तपस्विपरिकर्मसु योग्यम् नीतिवाक्यामृत, उद्धृत वर्ण, जाति और धर्म, पृष्ठ २६४-२६५. ब्राह्मणा व्रतसंस्कारात् क्षत्रियाः शस्त्रधारणात् । वणिजोऽर्थार्जनान्यायात् शूद्रा न्यग्वृत्तिासंश्रयात् ।। महापुराण, ३८/४६ उद्धृत वर्ण, जाति और धर्म, पृष्ठ ३७३. मनुष्यजातिरेकैव जातिनामोदयोदभवा । वृत्तिभेदाहिताद भेदाच्चातुर्विध्यामिहारनुते ।।
SR No.525036
Book TitleSramana 1999 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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