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________________ छन्द की दृष्टि से तित्थोगाली प्रकीर्णक का पाठ निर्धारण ७१७ केहि वि विराहणाभीरुएहिं अइभीरुएहिं कम्माणं ।३२ समणेहिं संकिलिलैं पच्चक्खायाई भत्ताई ।।२९ यहाँ पूर्वार्द्ध में 'ए' को लघु मात्रा मानकर तथा उत्तरार्द्ध में तृतीयारूप समणेहि के एकार को और अन्त गुरु को लघु मानकर छन्द पूरा हुआ। ७२८ सो भणति एव भणिए असि (?लि) टुकिलिट्ठएण वयणेणं ।२९ __ "न हु ता अहं समत्यो इण्हिं भे वायणं दाउं। २७ यहाँ पूर्वार्द्ध के कोष्ठक के (लि) को गाथा में शामिल किया गया है। ७३३ बारसविहसंभोगे (य) वज्जए तो तयं समणसंघो । २९ 'जं ने जाइज्जंतो न वि इच्छसि वायणं दाउं' ।।२६ यहाँ (य) को पादपूर्ति रूप में रखा गया है। ७३६ पारियकाउस्सग्गो भत्तट्टितो (ट्टितओ) व अहव सज्झाए ।२९ नितो व अइंतो वा एवं भे वायणं दाहं"।२७ यहाँ 'द्वितो' की जगह कोष्ठक के (द्वितओ) रखकर भत्तट्ठितओ रूप रखने से मात्रा पूर्ण हुई। ७४१ उज्जुत्ता मेहावी सद्धाए वायणं अलभमाणा ।३० अह ते थोवथो (त्यो) वा सव्वे समणा विनिस्सरिया ।।२६।। यहाँ थोवथो की जगह थोवत्थो करने से छन्द पूर्ण हुआ। ७४४ संदरअट्ठपयाइं अट्टहिं वासेहिं अट्ठमं पुव्वं। ३२ भिंदति अभिण्णहियतो आमेलेउं अह पवत्तो।। २७ यहाँ तृतीया रूप अट्ठहिं वासेहिं को अनुस्वाररहित रूप बना दिए जाने से छन्द पूरा हो गया। ७४८ एकं ता भे पुच्छं केत्तियमेत्तं मि सिक्खितो होज्जा?।३१ केत्तियमेतं च गयं? अट्ठहिं वासेहिं किं लद्धं?' ।।२९ यहाँ भी तृतीया रूप अट्ठहिं वासेहि को अनुस्वार रहित रूप करने से छन्द पूर्ण होता है। ७५० सो भणति एव भणिए 'भीतो न वि ता अहं समत्थो मि । २९ अप्पं च महं आउं बहू (य) सुयमंदरो सेसो' ।।२६। यहाँ उत्तरार्द्ध के कोष्ठक युक्त (य) को गाथा में शामिल कर 'बहूय' रूप बनाने से छन्द पूर्ण होता है। ७६१ 'नत्थेत्थ कोइ सीहो, सो चेव य एस भाउओ तुम्भं। ३० इड्ढीपत्तो जातो (तो) सुयइष्टुिं पयंसेइ' ।।२४ यहाँ उत्तरार्द्ध में कोष्ठक के (तो) को गाथा में शामिल कर अन्त लघु को गुरु
SR No.525036
Book TitleSramana 1999 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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