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छन्द की दृष्टि से तित्थोगाली प्रकीर्णक का पाठ निर्धारण यहाँ पूर्वार्द्ध के कोष्ठक के (य) को पादपूर्ति के लिए शामिल किया गया है।
दसकोडि (सय) सहस्साई अंतरं जस्स उदहिनामाणं । २९
तं संभवाओ अभिणंदणं विणीयाए उप्पण्णं ।। २९ इस गाथा के पूर्व और बाद की गाथा में 'सयसहस्साई' शब्द है। विषय की क्रमबद्धता की दृष्टि से इसमें भी 'सयसहस्साई' शब्द होना चाहिए। यहाँ (सय) कोष्ठक में है जिसे मूल गाथा में शामिल किया गया तथा दोनों अद्धालियों के अन्तिम गुरु को लघु कर छन्द पूरा किया गया। उत्तरार्द्ध के 'ए' की लघुगणना भी की गयी
५०३ पउमाभाओ सुपास वाणारसिउत्तमं समुप्पण्णं ।३१
तं सागरोवमाणं कोडिसहस्सेहिं नवहिं जिणं।। २९ यहाँ पूर्वार्द्ध में अंतिम गुरु को लघु कर तथा उत्तरार्द्ध में ‘सहस्सेहिं नवहिं' शब्द के अनुस्वार को हटाकर मात्रा पूर्ण की गयी है। ५०६ कोडीहिं नवहिं भहिलपुरम्मि सीयलजिणं समुप्पण्णं। ३२
रयणागरोवमाणं वियाण तं पुप्फदंताओ ।।२७ यहाँ पूर्वार्द्ध के 'कोडीहिं नवहिं' शब्द (तृतीय बहुवचन) के अनुस्वार को विकल्प से हटाकर पाद पूर्ण होता है। ५११ नवहि वियाणसु नवचंपगप्पभं सागरोवम (?सागरा) समुप्पण्णं। ३२
तमणंतमउज्झाए विमलाओ गतिगयं विमलं ।।२७
यहाँ 'सागरोवम' के ओकार को लघु तथा अन्त गुरु को लघु कर देने से पादपूर्ति हो गयी है। ५२० तेसीयसहस्सेहिं सएहिं अट्ठमेहिं वरिसेहिं ।३२
नेमीओ समुप्पण्णं वाराणसिसंभवं पासं ।।२८ यहाँ पूर्वार्द्ध के 'सएहिं' के ए को लघु कर तथा दोनों अर्द्धालियों के अन्तिम गुरु को लघु कर मात्रा पूरी की गयी है। ५२१ वाससएहिं वियाणह अड्डाइज्जेहिं नाइकुलकेउं। ३२
पासाओ समुप्पण्णं कुंडपुरम्मी महावीरं।। २८ यहाँ पूर्वार्द्ध में तृतीया के रूप क्रमश: ‘सएहिं' और अड्डाइज्जेहिं के अनुस्वार को विकल्प से हटाकर तथा उत्तरार्द्ध के अन्त गुरु को लघु कर छन्द पूर्ण किया गया
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उसभो य भरहवासे, बालचंदाणणो य एरवए। २९
दस वि य उत्तरसाढाहिं पूव्वसुरम्मि सिद्धिगया।। २८ यहाँ पूर्वार्द्ध में सभी मात्रा पूर्ण होने के बावजूद २९ मात्रा है। उत्तरार्द्ध में पूव्व