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भारतीय दर्शन में तनाव-अवधारणा के विविध-रूप चित्र.१ - क्लेश की अवस्थायें
प्रसुप्त (१)
क्लेश
उदार (४)/
( विच्छिन्न (३) कठिन होती जा रही अवस्थाओं को निम्नलिखित चित्र द्वारा बताया जा सकता है। दुःख
जिस प्रकार योग-दर्शन में हम तनाव के रूप में क्लेश की अवधारणा पाते हैं, उसी तरह सांख्य-दर्शन में द:ख व्यक्ति और उसके सांसारिक परिवेश के बीच परस्पर सम्बन्ध से उत्पन्न होता है। तनाव भी जैसा कि आधुनिक व्याख्याकारों का मत है अंतत: कहीं न कहीं शक्ति-सम्बन्धों से जुड़ी हुई वस्तु ही है। श्रम-पूंजी सम्बन्ध, पारिवारिक सम्बन्ध, लिंग-भेद से उत्पन्न सम्बन्ध आदि ही तनाव को जन्म देते हैं।' सांख्य दर्शन में दु:ख रूप में, ऐसे तीन प्रकार के तनावों का उल्लेख हआ हैआध्यात्मिक, आधिभौतिक और आधिदैविक। आध्यात्मिक दुःख व्यक्तिगत तनाव है जो आंतर-वैयक्तिक सम्बन्धों (इण्ट्रापर्सनल रिलेशन्स) से उत्पन्न है। जब व्यक्ति के मन में दो विरोधी भावनाओं का द्वन्द्व होता है तो इससे आध्यात्मिक दुःख जन्म लेता है। आधिभौतिक दुःख व्यक्ति और अन्य प्राणियों (भूतों) के बीच परस्पर सम्बन्ध से उत्पन्न होता है। इसी प्रकार आधिदैविक दुःख वह तनाव है जो व्यक्ति (समाज) तथा तथाकथित दैवी प्रकोपों-जिन पर व्यक्ति का वश नहीं होता जैसे बाढ़, आँधी, भूचाल,
और अन्य ऐसी ही विपदाएं आदि से जन्म लेता है। यदि आध्यात्मिक दु:ख इण्ट्रापर्सनल है तो आधिभौतिक दु:ख इण्टर्पर्सनल तथा अधिभौतिक दुःख को एन्वायरन्मैंटल (परिवेश सम्बन्धी) कहा जा सकता है।
दुःख
आध्यात्मिक
आधिभौतिक
आधिदैविक
चित्र (२) दु:ख के प्ररूप