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श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९९ आचारांग में कहा गया साधक ध्येय के प्रति दृष्टि नियोजित करे, तन्मय बने, ध्येय को प्रमुख बनाये, उसकी स्मृति में उपस्थित रहे, उसमें दत्तचित्त रहे२८१
बौद्ध एवं पातञ्जल साधना पद्धति में भी भावनाओं का प्रयोग होता है। पातञ्जल योग सूत्र में अनित्य, अशरण आदि भावनाओं का तो उल्लेख प्राप्त नहीं है किन्तु मैत्री, करुणा एवं मुदिता इनका उल्लेख है। महर्षि पतञ्जलि ने चित्त प्रसाद के लिए इन भावनाओं का उल्लेख किया है। उपेक्षा को इन्होंने भावना नहीं माना है, उनका अभिमत है कि पापियों में उपेक्षा करना भावना नहीं है अत: उसमें समाधि नहीं होती है।
बौद्ध साहित्य में अनुपश्यना शब्द का प्रयोग हआ है जो अनप्रेक्षा के अर्थ को ही अभिव्यक्त करता है। 'अभिधम्मत्थसंगहो' में अनित्यानुपश्यना, दुःखानुपश्यना, अनात्मानुपश्यना, अनिमित्तनुपश्यना आदि का उल्लेख प्राप्त है३०। 'विशद्धिमग्ग' में ध्यान के विषयों (कर्म-स्थान) के उल्लेख के समय दस प्रकार की अनुस्मृतियों एवं चार ब्रह्म विहार का वर्णन है। उनसे अनुप्रेक्षा की आंशिक तुलना हो सकती है। मरण-स्मृति कर्मस्थान में शव को देखकर मरण की भावना पर चित्त को लगाया जाता है जिससे चित्त में जगत् की अनित्यता का भाव उत्पन्न होता है। कायगतानुस्मृति अशौचभावना के सदृश है। मैत्री, करुणा, मदिता एवं उपेक्षा को बौद्ध दर्शन में ब्रह्म विहार कहा गया है। ये मैत्री आदि ही जैन साहित्य में मैत्री, करुणा आदि भावना के रूप में विख्यात हैं। आधुनिक चिकित्सा क्षेत्र में भी अनुप्रेक्षा का बहुत प्रयोग हो रहा है। मानसिक संतुलन बनाये रखने के लिए भी यह बहुत महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है। (Mind store) नामक प्रसिद्ध पुस्तक के लेखक (Jack Black) ने मानसिक संतुलन एवं मानसिक फिटनेस के प्रोग्राम में इस पद्धति का बहुत प्रयोग किया है, उनकी पूरी पुस्तक ही इस पद्धति पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश डालती है।
ध्यान के द्वारा ज्ञात सच्चाइयों की व्यावहारिक परिणति अनुप्रेक्षा के प्रयोग से सहजता से हो जाती है। अनुप्रेक्षा, संकल्प-शक्ति, स्वभाव-परिवर्तन, आदतपरिवर्तन एवं व्यक्तित्त्व निर्माण का महत्त्वपूर्ण उपक्रम है। चिकित्सा के क्षेत्र में इसका बहुमूल्य योगदान हो सकता है। अनुप्रेक्षा के माध्यम से आधि, व्याधि एवं उपाधि की चिकित्सा हो सकती है। प्रेक्षा-ध्यान के शिविरों में विभिन्न उद्देश्यों से अनुप्रेक्षा के प्रयोग करवाये जाते हैं। इनका लाभ भी अनेकों व्यक्तियों ने प्राप्त किया है अत: आज अपेक्षा इसी बात की है कि अनुप्रेक्षा के बहु-आयामी स्वरूप को हृदयंगम करके स्वपर कल्याण के कार्यक्रम में नियोजित किया जाये।
सन्दर्भ १. योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः पा० यो० सू०, १/२.