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श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९९
वस्तुत: एक ही नाम वाले विभिन्न आचार्यों के होने तथा उनकी परम्परा सम्बन्धी प्राय: अल्प विवरण उपलब्ध होने के कारण ऐसा भ्रम उत्पन्न हो जाना अस्वाभाविक नहीं है।
ग्रन्थ का मुद्रण त्रुटिरहित तथा साजसज्जा आकर्षक है। ऐसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ के सम्पादन, टीका तथा हिन्दी अनुवाद के लिए डॉ० जैन बधाई को बधाई देते हुए हम उनसे अपेक्षा करते हैं कि वे भविष्य में इसी प्रकार प्राचीन जैन साहित्य को प्रकाश में लाते रहेंगे।
साभार प्राप्त १. श्री लघु समयसार विधान-लेखक- श्री राजमल पवैया; संपा०-डॉ० देवेन्द्र कुमार शास्त्री ; प्रकाशक - श्री भरत पवैया ४४, इब्राहिमपुरा; भोपाल; मध्य-प्रदेश, प्रथम संस्करण; अक्टूबर १९९८ ई०; आकार-डिमाई, पृष्ठ ४+७६; मूल्य-८ रूपये.
२. श्रीभक्तामर विधान - लेखक एवं संपा० तथा प्रकाशक-पूर्वोक्त; तृतीय संस्करण; अक्टूबर १९९८ ई०; पृष्ठ ४+९२; मूल्य-९ रूपये मात्र..
३. श्रीबृहद् स्वयम्भू स्तोत्र विधान- लेखक; संपा० एवं प्रकाशक-पूर्वोक्त; प्रथम संस्करण- अक्टूबर १९९८ ई०; पृ० २२+२३४; मूल्य- २५ रूपये.
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