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________________ श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९९ के प्रत्येक चौपाइयों का अलग-अलग अर्थ और उनका अत्यन्त सरल भाषा में विस्तृत विवेचन किया है जिससे जनसामान्य भी भली-भाँति समझ सकता है और उन पर मनन कर सकता है। इस पुस्तक को तैयार करने में भंडारी जी ने न केवल अथक परिश्रम किया है बल्कि उसे प्रकाशित कराके अल्प मूल्य पर पाठकों को भी उपलब्ध कराया है। ऐसे सुन्दर और लोकहितकारी ग्रन्थ के प्रणयन और प्रकाशन के लिए श्री भंडारी जी को हार्दिक बधाई। हिन्दीसाहित्य की सन्तकाव्य परम्परा के परिप्रेक्ष्य में आचार्य विद्यासागर के कृतित्व का अनुशीलन -लेखक : डॉ० बारेलाल जैन, पृष्ठ २४+२५४; आकारडिमाई; प्रकाशक- श्रीनिम्रन्थ साहित्य प्रकाशन समिति, पी-४, कलाकार स्ट्रीट, कलकत्ता ७००००७; प्रथम संस्करण, १९९८ ई०; मूल्य ४५ रूपये मात्र. आचार्य विद्यासागर जी इस युग के महान् सन्त कवि हैं। उनकी लेखनी से विभिन्न मौलिक कृतियों का जन्म हुआ है। आचार्य श्री के कृतित्व पर लिखा गया यह प्रथम शोध प्रबन्ध है जिस पर श्री बारेलाल जैन को अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय, रीवा से पीएच० डी० की उपाधि प्राप्त हुई है। प्रस्तुत पुस्तक इसी शोध प्रबन्ध का मुद्रित रूप है। यह पुस्तक नौ अध्यायों में विभक्त है। प्रथम अध्याय में सन्तकाव्य की लम्बी परम्परा में आचार्य विद्यासागर के स्थान को निर्धारित किया गया है। दूसरे अध्याय में आचार्य श्री के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए उनके जीवन-सूत्रों को क्रमबद्ध रूप में प्रस्तुत किया गया है। तृतीय अध्याय में आचार्य श्री की रचनाओं का विवरण है। चतुर्थ अध्याय में हिन्दी की संतकाव्य परम्परा के संदर्भ में आचार्य श्री की रचनाओं का मूल्यांकन किया गया है। पांचवें अध्याय में सन्तकवियों की भावभूमि को स्पष्ट करते हुए आचार्य श्री के साहित्य में वर्णित विभिन्न पहलुओं की विवेचना है। छठे अध्याय में आचार्य श्री के साहित्य में वर्णित कलापक्ष का अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। सातवें अध्याय में आचार्य श्री की स्फुट और अद्यावधि-अप्रकाशित कृतियों का परिचय एवं उनका मूल्यांकन है। आठवें अध्याय में आचार्य श्री द्वारा अपने ग्रन्थों में किये गये सामाजिक व धार्मिक परिवर्तनों की स्थिति की चर्चा है। अंतिम अध्याय आचार्य श्री के समग्र साहित्य का सार है। अन्त में एक महत्त्वपूर्ण परिशिष्ट भी है जिसके अन्तर्गत आचार्य श्री के मूलग्रन्थों के साथ-साथ हिन्दी, संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और अंग्रेजी ग्रन्थों एवं पत्र-पत्रिकाओं की सूची भी दी गयी है। पुस्तक की साज-सज्जा अत्यन्त आकर्षक, निर्दोष मुद्रण एवं पक्के जिल्दों में होने के बाद भी इसका मूल्य अत्यधिक कम रखा गया हैं जो प्रकाशक और इसके लिए अर्थ सहयोगी श्रावक की उदारता का परिचायक है। ऐसे महत्त्वपूर्ण पुस्तक के प्रणयन, इसके प्रकाशन और अल्प मूल्य में वितरण के लिए लेखक, प्रकाशक तथा अर्थ सहयोगी बधाई के पात्र हैं। ४०
SR No.525036
Book TitleSramana 1999 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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