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नागपुरीयतपागच्छ का इतिहास चन्द्रकीर्तिमृरि द्वारा रचित धातुपाठविवरण, छन्दकोशटीका आदि कई कृतियां प्राप्त होती है। इसी प्रकार इनके शिष्य हर्षकीर्ति भी अपने समय के प्रसिद्ध रचनाकार । इनके द्वारा रचित सारस्वतव्याकरण धातुपाठ (रचनाकाल वि० सं० १६६३ / ई० स०१६०७), योगचिन्तामणि अपरनाम वैद्यकसारोद्धार, शारदीयनाममाला, अजियसंतिथव ( अजितशांतिस्तव), उवरसग्गहरथोत्त (उपसर्गहरस्तोत्र), धातुपाठ, नवकारमंत्र, (नमस्कारमंत्र), बृहच्छांतिथव (बृहद् शान्तिस्तव), लघुशान्तिस्तोत्र, सिन्दूरप्रकर आदि विभिन्न कृतियां प्राप्त होती हैं। गोपालभट्ट द्वारा रचित सारस्वतव्याकरण पर वृत्ति के रचनाकार भावचन्द्र भी नागपुरीयतपागच्छ के थे। अपनी उक्त कृति की प्रशस्ति" में इन्होंने अपने परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार हैं:
गुरु
चन्द्रकीर्तिसूरि
पद्मचन्द्र
भावचन्द्र (सारस्वतव्याकरण वृत्ति अपरनाम गोपालटीका के रचनाकर)
ऊपर सारस्वतव्याकरणदीपिका की प्रशस्ति में हम देख चुके हैं कि किन्ही पद्मचन्द्र की प्रार्थना पर उक्त कृति की रचना की गयी थी। इससे यह प्रतीत होता है कि मुनि पद्मचन्द्र का रचनाकार से अवश्य ही निकट सम्बन्ध रहा होगा। ऊपर हम गोपालटीका की प्रशस्ति में देख रहे हैं कि टीकाकार भावचन्द्र ने पद्मचन्द्र को चन्द्रकीर्तिसूरि का शिष्य और अपना गुरु बतलाया है। इस प्रकार सारस्वतव्याकरण दीपिका की प्रथमादर्शप्रति के लेखक हर्षकीर्ति और उक्त कृति की रचना हेतु आचार्य चन्द्रकीर्ति को प्रेरित करने वाले पद्मचन्द्र परस्पर गुरुभ्राता सिद्ध होते हैं।
चन्द्रकीर्तिसूरि (वि० सं० १६२३ में सारस्वतव्याकरणदीपिका के रचनाकार)
पद्मचन्द्र (सारस्वतव्याकरणदीपिका की रचना के लिए प्रार्थना करने वाले)
भावचन्द्र (सारस्वतव्याकरणवृत्ति
अपरनाम गोपालटीका के रचनाकार)
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हर्षकीर्ति (सारस्वतव्याकरण दीपिका को प्रथमादर्श प्रति लेखक)