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________________ तपागच्छ विजयसंविग्न शाखा का इतिहास जी महाराज हुए। इन सभी के द्वारा २०वीं शताब्दी में की गयी जैन साहित्य की सेवा से पूरा देश गौरवान्वित है। आत्माराम जी अपरनाम विजयानन्द सूरि के पट्टधर स्वनामधन्य आचार्य विजयवल्लभ सूरि हुए।३। मानव सेवा तथा शिक्षा प्रसार के जिस कार्य को विजयानन्द सूरि जी ने प्रारम्भ किया था उसे आगे बढ़ाने में विजयवल्लभ सूरि का महान् योगदान है। इनके पट्टधर विजयसमुद्र सूरि हुए। वर्तमान में इस समुदाय का नेतृत्व आचार्य विजयइन्द्रदिन्न सूरीश्वर जी महाराज कर रहे हैं जिनकी निश्रा में २६५साधु-साध्वी है। आत्माराम जी महाराज के एक अन्य शिष्य उपा० वीरविजय हुए । इनके बारे में विशेष विवरण नहीं मिलता। इनके पट्टधर विजयदान सूरि और विजयदान सूरि के पट्टधर विजयप्रेम सूरि हए४५। विजयप्रेम सूरि के दो शिष्यों विजयरामचन्द्र सूरि और विजय वनभानुचन्द्र सूरि से दो अलग-अलग शिष्य परम्परायें चलीं जिनका नेतृत्व क्रमश: विजयमहोदय सूरि जी म० और विजयजयघोष सरि जी म० कर रहे हैं। विजयमहोदय सूरि की निश्रा में कुल ९५५ साधु साध्वी हैं जो संख्या, की दृष्टि से अन्य समुदायों की तुलना में सर्वाधिक है४६। विजयजयघोष सरि की निश्रा में रहने वाले साधु-साध्वियों की संख्या ४६० है। ये सभी गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान के विभिन्न भागों में मुख्यतया विचरण कर धर्मप्रभावना के कार्य में रत हैं। द्रष्टव्यः तालिका क्रमांक-३ उक्त तीनों तालिकाओं के समायोजन से विजयसंविग्न शाखा के मुनिजनों के गुरु-परम्परा की एक विस्तृत तालिका का पुनर्गठन किया जा सकता है, जो इस प्रकार तालिकाः तालिका क्रमांक - ४ विजयसंविग्न शाखा में आज छोटी-बड़ी विभिन्न उपशाखायें विद्यमान हैं और इन सभी का नामकरण उपशाखा के प्रवर्तक आचार्यों के नामों के आधार पर ही हुआ है। जैसे विजयानन्द सूरि जी की परम्परा में हुए विजयप्रेम सूरि जी के नाम पर उनका शिष्य समुदाय विजयप्रेम सूरि जी का समुदाय, इसी परम्परा में हुए विजयवल्लभ सरि जी की शिष्य परम्परा उन्हीं के नाम पर विजयवल्लभ सूरि जी का समुदाय कहा जाता है। ये सभी समुदाय अपने आप में पूर्ण रूपेण स्वतंत्र हैं और इनके अपने-अपने अलग-अलग गच्छनायक आचार्य हैं जिनकी आज्ञा में उस समुदाय के अन्य आचार्य, गणि, उपाध्याय, प्रवर्तक आदि रहते हैं। वर्तमान समय में भी इस गच्छ में विभिन्न प्रभावशाली और विश्वविश्रुत विद्वान् हैं जो जैन धर्म को जीवन्त एवं समुन्नत बनाये रखने में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।
SR No.525036
Book TitleSramana 1999 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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