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________________ م अंक Jain Education International د ई० सन् १९५४ १९५४ १९५४ १९५४ ک ک ५ ک ک १९५४ ک ک पृष्ठ १-१० ११-२० २१-२५ २९-३८ १-८ १६-१७ १८-१९ २०-२५ २६-३० ३१-३४ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक पं० दलसुख मालवणिया डॉ० इन्द्रचन्द्र शास्त्री डॉ० इन्द्र मुनि जिनविजय जी डॉ० इन्द्र श्री अगरचन्द नाहटा मुनि श्री आईदान जी महाराज डॉ० इन्द्र महो० विनयसागर जी श्री भगवान लाल भांकड़ श्रीमती सत्यवती जैन पं० बेचरदास दोशी श्री अगरचन्द नाहटा डॉ० इन्द्र डॉ० इन्द्र श्री देवेन्द्र कुमार श्री जयभिक्खु श्री अगरचन्द नाहटा लेख भगवान् महावीर के गणधर सूत्रकृतांग में वर्णित मतमतांतर महात्मा हुसेन बसराई जैनकथा साहित्य का सार्वजनीन महत्त्व अभय का अराधक चन्द्रवेध्यक आदि ४ सूत्र अनुपलब्ध नहीं हैं । मनुष्य की प्रगति के प्रति भयंकर विद्रोह संसार के धर्मों का उदय अविद पद शतार्थी जीवन-रहस्य नारी का स्थान घर है या बाहर ? हमारा क्रांतिवारसा (क्रमश:) जिनधर्म का तमाशा गुरु नानक आस्तिक और नास्तिक अपने को जानिए सांपू सरोवर अमरवाणी For Private & Personal Use Only ک १९५४ १९५४ १९५४ १९५४ 33 33 ur ur ur or ur r 9 9 9 9 9 9 1 ک ک १९५४ ک ३५ ک ک ک १९५४ १९५४ १९५४ १९५४ १९५४ १९५४ १९५४ १९५४ १-८ ९-११ १२-२५ २७-३० ३१-३३ ३४-३९ ک ک www.jainelibrary.org ک १-४ ک
SR No.525034
Book TitleSramana 1998 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1998
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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