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________________ लेख R Jain Education International ک . ५ ५ ५ ک ک ک ک ک For Private & Personal Use Only ک श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक पं० सुखलाल जी डॉ० इन्द्र मुनि पुण्यविजय जी डॉ० इन्द्र डॉ० इन्द्र श्री किशोरीलाल मशरूवाला डॉ० इन्द्रचन्द्र शास्त्री डॉ० इन्द्रचन्द्र शास्त्री श्री अगरचन्द नाहटा डॉ० इन्द्र मुनि श्री आईदान जी० महराज श्री नरेन्द्र कुमार जैन पं० बेचरदास जी श्री मनुभाई पंचोली डॉ० इन्द्र श्री महावीर प्रसाद 'प्रेमी' डॉ० इन्द्र पं० दलसुख मालवणिया शास्त्ररचना का उद्देश्य जैन साहित्य के विषय में अजैन विद्वानों की दृष्टियाँ जैन ज्ञान भंडारों पर एक दृष्टिपात जैन साहित्य का विहंगावलोकन जैन साहित्य के संकेत चिन्ह आत्मा का बल सम्यक् दृष्टि और मिथ्या दृष्टि सन्त एकनाथ के जीवनप्रसंग बीसवीं सदी का जैन साहित्य पितृहीन नारी का महत्त्व विश्वशांति का आधार-गांधीवाद जैन संस्कृति और मिथ्यात्व कला का कौल सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि वैशाली और भगवान् महावीर का दिव्य संदेश वैशाली के गणतन्त्र की एक झांकी सिद्धिविनिश्चय और अकलंक पृष्ठ २४ २५-२८ १-७ ।। ८-१४ ३०-३८ १-२ ३-१० ११-१९ २०-२४ २५-२९ ३०-३६ ३७-४० <<<<<wwwww am all Www mm. ک ई० सन् १९५३ १९५३ १९५३ १९५३ १९५३ १९५४ १९५४ १९५४ १९५४ १९५४ १९५४ १९५४ १९५४ १९५४ १९५४ १९५४ १९५४ १९५४ ک ک ک ک ४० ک ک ک www.jainelibrary.org १-३ ४-११ १४-२३ २८-३० ३१-३२ ک ک
SR No.525034
Book TitleSramana 1998 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1998
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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