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________________ १६८ श्रमण : अतीत के झरोखे में Jain Education International For Private & Personal Use Only लेख वैराग्यशतक शब्दरत्नमहोदधि नामक संस्कृत गुजराती जैन-कोश श्वेताम्बर पण्डित परम्परा शासनप्रभावक जिनप्रभसूरि षट्दर्शनसमुच्चय के लघुटीकाकार-सोमतिलकसरि संडेरगच्छीय ईश्वरसूरि की प्राप्त एवं अप्राप्त रचनाएं संवेगरंगशाला क्या देवभद्रसूरि रचित और अनुपलब्ध है? संवेगरंगशाला नामक दो ग्रन्थ नहीं एक ही है । संस्कृत साहित्य के इतिहास के जैन सम्बन्धित संशोधन सबके कल्याण में अपना कल्याण है स्वर्गीय हीरालाल कापडिया सात लाख श्लोक परिमित संस्कृत साहित्य के निर्माता जैनाचार्य विजयलावण्यसूरि साधुवन्दना के रचयिता सिंहदेवरचित एक विलक्षण महावीरस्तोत्र हमारी भक्ति निष्ठा कैसी हो? । हरिकलशरचित दिल्ली-मेवात देश चैत्यपरिपाटी हरियाणा के सुकवि मालदेव की नवोपलब्ध रचनाएँ ११ १ ५ ई० सन् १९६० १९७७ १९८७ १९७६ १९७२ १९७४ १९६९ १९६९ १९६६ १९६३ १९८७ १९७२ १९७० १९७९ १९५५ १९७६ १९७७ पृष्ठ ३२-३३ २२-२४ १०-१३ १३-२० २०-२३ २९-३२ २३-२६ ३४ २२-२६ २१-२८ २३-२६ १९-२३ २९-३२ २०-२५ ८-९ । १८-२१ २१-२४ www.jainelibrary.org ५ १० ८ ३
SR No.525034
Book TitleSramana 1998 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1998
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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