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________________ श्रमण : अतीत के झरोखे में १६५ लेख अंक Jain Education International For Private & Personal Use Only । पर्युषण पर्व पर दो महत्तपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान पल्लीवालगच्छीय शांतिसूरि का समय एवं प्रतिष्ठा प्रज्ञाचक्षु राजकवि श्रीपाल की एक अज्ञात रचना-शतार्थी प्राकृत भाषा के चार कर्मग्रन्थ । प्राकृत भद्रबाहुसंहिता का अर्धकाण्ड प्राकृत-हिन्दी कोश के महान् प्रणेता : पं० हरगोविन्ददास प्राकृत और उसका साहित्य प्राकृत साहित्य के इतिहास के प्रकाशन की आवश्यकता प्राचीन जैन राजस्थानी गद्य साहित्य प्राणप्रिय काव्य का रचनाकाल, श्लोक संख्या और सम्प्रदाय प्राणप्रिय काव्य के रचयिता व रचनाकाल ४५ आगम और मूलसूत्र की मान्यता पर विचार पैंतालीस और बत्तीस सूत्रों की मान्यता पर विचार १२वीं शताब्दी की एक तीर्थमाला बीकानेरी चित्र-शैली का सर्वाधिक चित्रों वाला कल्पसूत्र बीसवीं सदी का जैन इतिहास भक्तामर की एक और सचित्रप्रति Pam M2M 29 MMM ~ 2013 45 °F 3m x 2 9 orr 42 m ) ई० सन् १९५६ १९५२ १९६७ १९६२ १९७६ १९७७ १९५९ १९५३ १९५६ १९८२ १९७२ १९८२ १९५० १९७६ १९७७ १९५४ १९७३ पृष्ठ ३७-३९ ३१-३३ ६-८ २४-२५ १०-१४ १९-२२ १३-१९ २१-२७ ११-१८ २७-२९ १७-२० ६१-६३ २४-२९ १९-२३ २०-२४ २०-२४ २१-२४ www.jainelibrary.org
SR No.525034
Book TitleSramana 1998 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1998
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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