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________________ १५४ लेख Jain Education International अंक ७-९ ई० सन् पृष्ठ १९९४ ३१-५१ For Private & Personal Use Only श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक मडाडागच्छ का इतिहास : एक अध्ययन डॉ० शिवप्रसाद सन्दर्भ एवं भाषायी दृष्टि से आचारांग के उपोद्धात में प्रयुक्त प्रथम वाक्य के पाठ की प्राचीनता पर कुछ विचार डॉ० के० आर० चन्द्र बारहभावना : एक अनुशीलन डॉ० कमलेश कुमार जैन भारतीय दर्शन में मोक्ष की अवधारणा डॉ० राजीव प्रचण्डिया कर्म और कर्मबन्ध डॉ० नन्दलाल जैन महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक समीक्षा डॉ० जगदीशचन्द्र जैन आचार्य सम्राट पूज्य श्री आत्माराम जी महाराज एक अशुमाली श्री हीरालाल जैन जैन महापुराण : एक कलापरक अध्ययन डॉ० कुमुद गिरि अर्धमागधी आगम साहित्य डॉ० सागरमल जैन प्राचीन जैन आगमों में चार्वाक दर्शन का प्रस्तुतीकरण डॉ० सागरमल जैन महावीर के समकालीन विभिन्न आत्मवाद एवं उसमें जैन आत्मवाद का वैशिष्ट्य डॉ० सागरमल जैन सकरात्मक अहिंसा की भूमिका तीर्थंकर और ईश्वर के सम्प्रत्ययों का तुलनात्मक विवेचन मन-शक्ति, स्वरूप और साधना : एक विश्लेषण जैन दर्शन में नैतिकता की सापेक्षता ७-९ १९९४ ५२-५९ ७-९ १९९४ ५५-६१ १०-१२ १९९४ १-९ १०-१२ १९९४ १०-२२ १०-१२ १९९४ २३-२५ १०-१२ १९९४ २६-३२ १०-१२ १९९४ ३३-३६ १-३ १९९५ १-४५ १-३ १९९५ ४६-५८ १-३ १-३ www.jainelibrary.org १९९५ ५९-६८ १९९५ ६९-८६ १९९५ ८७-९२ १९९५ ९७-१२२ १९९५ १२३-१३३
SR No.525034
Book TitleSramana 1998 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1998
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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