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________________ १५३ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक लेख अंक Jain Education International ४५ ४-६ ४५ ४-६ ई० सन् पृष्ठ १९९४ १२९-१३४ १९९४ १३५-१४३ १९९४ १४४-१६१ १९९४ १६२-१७२ ४-६ ४-६ ४५ ४-६ १९९४ १७३-१७८ For Private & Personal Use Only 9 भारतीय संस्कृति का समन्वित स्वरूप पर्यावरण के प्रदूषण की समस्या और जैनधर्म जैनधर्म और सामाजिक समता जैन आगमों में मूल्यात्मक शिक्षा और वर्तमान सन्दर्भ खजुराहो की कला और जैनाचार्यों की - १ समन्वयात्मक एवं सहिष्णु दृष्टि 1 महापण्डित राहुल सांकृत्यायन के जैनधर्म सम्बन्धी * मन्तव्यों की समालोचना ॐ ऋग्वेद में अर्हत् और ऋषभवाची ऋचायें:एक अध्ययन निर्युक्त साहित्य : एक पुनर्चिन्तन जैन एवं बौद्ध पारिभाषिक शब्दों के अर्थ-निर्धारण और अनुवाद की समस्या जैन आगमों में हुआ भाषिक स्वरूप परिवर्तन : एक विमर्श भगवान् महावीर की निर्वाण तिथि पर पुनर्विचार कर्म की नैतिकता का आधार-तत्त्वार्थसूत्र के प्रसङ्ग में रामचन्द्रसूरि और उनका साहित्य प्राकृत की बृहत्कथा “वसुदेवहिण्डी” में वर्णित कृष्ण १९९४ १९९४ १९९४ १९९४ १७९-१८४ १८५-२०२ २०३-२३३ २३४-२३८ ४५ " ४५ ७-९ डॉ. रत्ना श्रीवास्तव डॉ० कृष्णपाल त्रिपाठी डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव ४५ ४५ www.jainelibrary.org ७-९ ७-९ ७-९ १९९४ १९९४ १९९४ १९९४ १९९४ २३९-२५३ २५४-२६८ १-९ । १०-२२ २३-३० ४५
SR No.525034
Book TitleSramana 1998 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1998
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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