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________________ १३४ Jain Education International लेख अंक ई० सन् १९८४ १९८४ १९८४ ३५ ३५ ३५ १९८४ शुद्धि, चिकित्सा और सिद्धि का महान् पर्व-संवत्सरी प्रेम की सरिता प्रवाहित करने वाला पर्व अध्यात्म-आवास/पर्युषण सिद्धि का पथ : आर्जवधर्म तप का उपादेय : कर्मों की निर्जरा भगवान् महावीर की साधना मानव जाति के अभ्युदय का पर्व 'दीपावली' भारतीय संस्कृति के विकास में श्रमण धारा का महत्त्व आत्म परिमाण (विस्तार क्षेत्र) जैन दर्शन के सन्दर्भ में तत्त्वार्थ राजवार्तिक में वर्णित बौद्धादिमत ३५ ३५ For Private & Personal Use Only श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक युवाचार्य महाप्रज्ञ मुनि मणिप्रभ सागर दर्शनाचार्य मुनि योगेशकुमार श्रीमती अलका प्रचण्डिया 'दीति' डॉ० आदित्य प्रचण्डिया 'दीति' उपाध्याय अमरमुनि दर्शनाचार्य योगेशकुमार डॉ० कोमलचन्द्र जैन दर्शनाचार्य मुनि योगेशकुमार डॉ० उदयचन्द जैन मुनिश्री महेन्द्रकुमार जी 'प्रथम' डॉ० मंगल प्रकाश मेहता भंडारी सरदारचंद जैन . मुनिश्री महेन्द्रकुमारजी 'प्रथम' श्री सौभाग्य मुनि जी 'कुमुद' जिनेन्द्र कुमार मुनिश्री महेन्द्रकुमारजी 'प्रथम' 244444442 r r r r mmm पृष्ठ २-३ ४-६ ७-१६ १७-१८ १९-२० १-१० ११-१४ १५-२४ २८-३६ ३७-४८ २-७ १-३ ५-७ ८-१० २-४ ६-१० ११-१३ ३५ ३५ ३६ ३६ ३६ नागदत्त १९८४ १९८४ १९८४ १९८४ १९८४ १९८४ १९८४ १९८४ १९८४ १९८४ १९८५ १९८५ १९८५ ३६ शान्तरस : जैनकाव्यों का प्रमुख रस धर्म का स्वरूप बन्दर का रोना आडम्बरप्रिय नहीं धर्मप्रिय बनो राष्ट्रीय विकास-यात्रा में जैनधर्म एवं जैन पत्रकारों का योगदान पाप का घट ३६ www.jainelibrary.org ३६३
SR No.525034
Book TitleSramana 1998 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1998
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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