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मुनिराज वन्दना बत्तीसी शीलव्रत
काम महा-बलवान बडो सुर खैचर इंद्र सो चाक्र कारि। नरिंद्र पति बलदेव सु चक्री, बसुदेव इत्यादिक बड़े बल धारि।
ओर जो पंखी-पसु' इत्यादिक सब ही को काम सतावत भारि।
सो ऋखिराज धरै न विबाद, करे व्रत सील सु सुंजम धारि।।१७।। दोहा
सील व्रत सब व्रत में, है मोटो सिरदार।
इसभव-परभव के बिघे संकट टालनहार।।१८।। सवैया- षट्काय प्रतिपाल
सुक्रत की खनी जानी, सब जीव सुखदानी कुगति नसायबे को, पावक समान है। सुरग के सुख करे, पद मा आय पाय पडै, लोगन में जस करे, मोटो सुभ काज है,। पृथ्वी-अप्प-तेज-वायु वनस्पति काय, चर्तु जो बीसलाख, जिनराज जी बखानी है। त्रस काय चार भेद ये न, को न हर्णै
जे ति मन-वच-काय जाने, आपकी समान है।।१९।। दोहा
जिनबानी को मूल है, षट्काया प्रतिपाल।
अनंत जीव मुक्ति गये, षट्काया हो नाथ।।२०।। सवैया
सिषरे कहे गुरु सुनो, जीव ही न हणो जाय मारो ही न मरे, काटो ही न कटाय है। जीव ही अरूपी कहो, सजीव मारो जाय है। गुरु कहे सिष सुनो, दस ही जो प्राण जान पांचों इंद्री बेन और मन है। काया ही जा बल प्राण, सासरे आयु यवि जान
इनही को नास करे, सोइ प्राणातिपात है।।२१।। १. पशु-पक्षी
२. शिष्य, ३. जीवन आत्मा श्वास
४. जीव हिंसा