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________________ ८८ श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९८ इस सर्ग में प्रथम ५५ श्लोक उपजाति में और अन्तिम ५६वाँ श्लोक प्रहर्षिणी में निबद्ध है। प्रहर्षिणी का लक्षण२७ एवं उदाहरण२८ इस प्रकार है प्रहर्षिणी - (म्नौ ज्रौगस्त्रिदशयतिः प्रहर्षिणीयम्।।) अर्थात् प्रहर्षिणी के प्रत्येक चरण में क्रमश: मगण, नगण, जगण, रगण और एक गुरु होता है। आशायामशिशिरधाम्नि पश्चिमायामायाते सुकृतवतामपश्चिमोऽसौ। तान्कृत्वा धनकनकै: कवीन् कृतार्थानावासं स्वमभि चचाल वस्तुपालः।।५६।। चन्द्रोदयवर्णन नामक सप्तम सर्ग में ८३ श्लोक हैं। जिसमें प्रारम्भ के ५३ श्लोक अनुष्टुभ् में हैं। ५४ से ५६ और ५९ से ७२ उपजाति में ५७, ५८ इन्द्रवज्रा में तथा ७६, ८० एवं ८१ पुष्पिताग्रा में रचित हैं। ८२, ८३ शार्दूलविक्रीडित छन्द में एवं ७३ वसन्तमालिका में, ७८ प्रहर्षिणी में तथा ७४ और ७९ द्रुतविलम्बित छन्द में रचित हैं। इस ग्रन्थ में द्रुतविलम्बित छन्द का प्रयोग सप्तम सर्ग में ही पहली बार हुआ है। इसका लक्षण एवं उदाहरण इस प्रकार है द्रुतविलम्बितमाह नभौ भरौ। अर्थात इसके प्रत्येक चरण में क्रमश: नगण, भगण, पुन: भगण और अन्त में एक रगण होता है। उदाहरण३० निगदितुं विधिनाऽपि न शक्यते, सुभटता कुचयोः कुटिलध्रुवाम। सुरतसंयति यौ प्रियपीडितावपि, नतिं न गतौ च्युतकञ्चुकौ।।७९।। अष्टम परमार्थविचार नामक सर्ग में ७१ श्लोक हैं। इस सर्ग के आरम्भिक ५६ श्लोक अनुष्टुभ् छन्द में हैं। सर्ग के शेष श्लोकों में से बारह (५७-६८) पुष्पिताग्रा में, श्लोक ६९वाँ शालिनी में, ७०वाँ प्रहर्षिणी में और अन्तिम ७१वाँ शार्दूलविक्रीडित छन्द में रचित है। कीर्तिकौमुदी के अन्तिम नवम सर्ग में ७८ श्लोक हैं। इसमें भी प्रस्तुत काव्य के प्रधान छन्द अनुष्टुभ् का प्रयोग नहीं हुआ है। इसमें अधिक संख्या में श्लोक उपजाति में निबद्ध हैं। उपजाति से भिन्न आठ श्लोक (क्र०सं० २, ४, १५, २०, २४, ४३, ४५, एवं ६५ इन्द्रवज्रा में तथा ७४ से ७६ वसन्ततिलका में और ग्रन्थ के अन्तिम दो श्लोक शार्दूलविक्रीडित छन्द में निबद्ध हैं।
SR No.525033
Book TitleSramana 1998 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Shivprasad, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1998
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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