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________________ ७८ श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९८ जिनहर्षसूरि (वि० सं०१५१९.१५६४) प्रतिमालेख जिनहंससूरि (वि०सं० १.०९-१.६८) प्रतिमालेग्नु जिनचन्द्रसूरि (द्वितीय) विवकसिंह जिनसुन्दरसूरि (आरामशोभाकथा. वि०सं० १६वीं शती के रचनाकाल) धर्मसमुद्रगणि जिनशीलसूरि जिनकीर्तिसूरि जिनसिंहसूरि गुणलाभ (वि०सं० १६५६ में जीभरसाल के रचनाकार) जिनचन्द्रसूरि (तृतीय) (वि०सं० १६६९ में विद्यमान) जिनरत्नसूरि मुनिराजसुन्दर (वि०सं० १६६९ में पिप्पलकगच्छपट्टावलीचौपाई के रचनाकार) (वि०सं० १७१० में जि पन्नाऋषिचौपाई के रचनाकार) जिनधर्मसूरि (चतुर्थ) अपरनाम शिवचन्द्रसरि वि०सं० १७९४ में स्वर्गस्थ वि० सं० की १८वीं शती के पश्चात् इस शाखा से सम्बद्ध प्रमाणों के अभाव को देखते हुए यह माना जा सकता है कि इस समय के पश्चात् इस शाखा का महत्त्व समाप्त हो गया और इसके अनुयायी खरतरगच्छ की किन्हीं अन्य शाखाओं से सम्बद्ध हो गये होंगे। प्रस्तुत आलेख के लेखन एवं संशोधन में स्वनामधन्य श्री भंवरलाल जी नाहटा एवं महो० विनयसागरजी का उदार सहयोग प्राप्त हुआ है, जिसके लिये लेखक उनका हृदय से आभारी है। संदर्भ अगरचन्द नाहटा, "श्वेताम्बर श्रमणों के गच्छों पर संक्षिप्त प्रकाश', यतीन्द्रसूरि अभिनन्दन ग्रन्थ, संपा०, पं० लालचंद भगवानदास गांधी, आहोर १९५८ ई०स०, पृष्ठ-१४६.
SR No.525033
Book TitleSramana 1998 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Shivprasad, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1998
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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