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________________ ७६ श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९८ ---- मानकीर्ति देवकलश सुमतिकलश विनयसागर (वि० सं० १६१७/ई०स० १५६१ में सोमचन्द्रराजाचौपाई के रचनाकार) मुनि विनयसागर द्वारा रचित चित्रसेनपद्मावतीरास राक्षसकाव्यटीका, राधवपाण्डवीयकाव्य, विदग्धमुखमंडनटीका, प्रश्नप्रबोध काव्यालंकार स्वोपज्ञटीकासह, भक्तामरटीका, कल्याणमन्दिरटीका आदि कृतियां भी प्राप्त होती हैं।२६ साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर निर्मित पिप्पलकशाखा के मुनिजनों के गुरु-शिष्य परम्परा की पूर्वोक्त तालिका एवं सोमचन्द्रराजाचौपाई में प्रशस्तिगत पिप्पलकशाखा के मुनिजनों के बीच क्या सम्बन्ध रहा, यह ज्ञात नहीं होता। ठीक यही बात धर्मचन्द्र के शिष्य मतिनन्दन (वि०सं० १६वीं शती में धर्मविलास३७ के कर्ता); जिनसिंहसूरि के प्रशिष्य और लब्धिचन्द्र के शिष्य शिवचन्द्र (विदाधमुखमण्डनसुबोधिका३८ के रचनाकार); दयासागर के शिष्य उदयसमुद्र (वि०सं० १६१९/ई० सन् १५५३ में मदननरिंदचरित३९ के रचनाकार); हंसराज (वि० सं० १७वीं शती में ज्ञानबावनी एवं द्रव्यसंग्रहबालावबोध के रचनाकार) आदि के बारे में भी कही जा सकती है। क्षेत्रसमासप्रकरणबालावबोध (रचनाकाल वि० सं० १६५६), लोकनालवार्तिक ३९अ (वि०सं०१७वीं शती), वाग्भट्टालंकारटीका (वि० सं० १७वीं शती) आदि के रचनाकार साधुधर्म के प्रशिष्य और सहजरत्न के शिष्य उदयसागर४०, कुलध्वजकुमाररास के कर्ता और कमलहर्ष के शिष्य उदयसमुद्र, जयसेनचरित्र २ (वि०सं० १८वीं शती) के रचनाकार और विवेकरत्नसूरि के शिष्य रत्नलाभ, कर्मविपाक, कर्मस्तव आदि के रचनाकार और उदयसागर के प्रशिष्य तथा जयकीर्ति के शिष्य सुमतिसूरि ३ भी खरतरगच्छ की पिप्पलकशाखा से ही सम्बद्ध रहे किन्तु तालिका संख्या १ में प्रदर्शित पिप्पलकशाखा के मुनिजनों से उक्त रचनाकारों का क्या सम्बन्ध था, यह ज्ञात नहीं होता।
SR No.525033
Book TitleSramana 1998 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Shivprasad, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1998
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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