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५६ श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९८
सारांश यह है कि “मैं कौन हूँ?" यह प्रश्न ऐसा है जिसके हजारों उत्तर संभव हैं, किन्तु प्रश्नकर्ता इसके हजारों उत्तर हमसे नहीं सुनना चाहता है। हर व्यक्ति कुछ ही पंक्तियों में इस प्रश्न का उत्तर चाहता है।
इसी बात को आगे बढ़ाते हुए यदि हम स्वयं से यह पूछे कि “मैं कौन हूँ?" एवं जैसे बैंक मैनेजर आपसे हजारों उत्तर नहीं सुनना चाहता है वैसे ही आप भी स्वयं से हजारों उत्तर न चाहते हुए अपने प्रयोजन का सीमित उत्तर सुनना चाहो तो जो भी उत्तर प्राप्त होगा वह इस प्रश्न का आध्यात्मिक उत्तर कहला सकेगा। अध्यात्म का प्रारंभ भी एक अपेक्षा से ऐसे ही उत्तर से होगा। उक्त वाक्य में 'प्रयोजन' शब्द की व्याख्या अपने आप में एक स्वतंत्र लेख की अपेक्षा रखती है। हम इस विस्तार को छोड़ते हुए यह कहना चाहेंगे कि अध्यात्म की दृष्टि में 'मैं' एक ऐसा पदार्थ हूँ जिसका शरीर के साथ विनाश नहीं होता है। मैं अविनाशी आत्मा हूँ। २. बदलता परिचय एवं स्थायी परिचय
अध्यात्म के अनुसार इस समय तथाकथित मेरे शरीर के साथ जो ज्ञान गुण वाली आंखों से न दिखाई देने वाली अविनाशी चेतना या आत्मा है, वह मैं हूँ। बात यहाँ ही समाप्त नहीं होती है। "मैं कौन हूँ?' इस प्रश्न का आध्यात्मिक उत्तर थोड़ा
और अधिक विशेष है। यदि इतना ही उत्तर होता तो इसे प्रश्नोत्तर के रूप में हम यहाँ नहीं उठाते, क्योंकि अध्यात्म के प्रारंभ में ही यह बताया जाता है कि अध्यात्म अपनी आत्मा को शरीर के साथ होते हुए भी शरीर से भिन्न प्रकार का तत्त्व स्वीकार करता है।
आगे बढ़ने के पूर्व एक सरल उदाहरण पर जरा विचार करें। यदि कोई मुझसे पछे कि मेरे उज्जैन में स्थित स्थायी निवास का पता क्या है? व यदि इस प्रश्न के उत्तर में निम्नांकित दो प्रकार के उत्तर दूं तो आप उनको किस रूप में समझेंगे व स्वीकारेंगे?
१. मेरे निवास का पता २२०, विवेकानन्द कालोनी, उज्जैन (म०प्र०) है। यह मकान दो मंजिला है व गुलाबी रंग का है। क्यारी में गुलाब के फूल लग रहे हैं व कैक्टस के गमले भी बाहर से मकान में दिखाई देंगे।
२. मेरे निवास का पता २२०, विवेकानन्द कालोनी, उज्जैन (म०प्र०) है।
इन दो उत्तरों में से पहला उत्तर विस्तृत है किन्तु मकान का यह परिचय कुछ ही महीनों या वर्षों बाद गलत सिद्ध हो सकता है, क्योंकि गुलाबी रंग, गुलाब के फूल, कैक्टस आदि जो आज दिखाई देते हैं वे बदल सकते हैं। किन्तु जिस मित्र ने अपनी डायरी में दूसरा उत्तर लिखा है उसे यह मकान कुछ वर्षों बाद भी मिल सकेगा, वह रंग के बदलने या गुलाब के फूल न होने से भी भ्रमित नहीं होगा।