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श्रमण
स्वयं की अनेकान्तमयी समझ से तनावमुक्ति
डॉ० पारसमल अग्रवाल *
१. हमारा परिचय
"मैं कौन हूँ?” इस प्रश्न पर अनेकान्तमयी विचार करके हम यह देखेंगे कि इस प्रश्न के उत्तर से हमें न केवल आध्यात्मिक लाभ हो सकता है अपितु दिन-प्रतिदिन के व्यावहारिक जीवन में होने वाले तनाव भी बहुत कम हो सकते हैं।
जब हम अपने घर का दरवाजा खुलवाने हेतु घर के अन्दर से यह प्रश्न सुन हैं “कौन?” तो हम बाहर से जो उत्तर सामान्यतया देते हैं वह उस परिस्थिति में समुचित उत्तर होता है। अनेकान्तवाद के दायरे में "मैं कौन हूँ?" प्रश्न का वह उत्तर भी उस परिस्थिति विशेष में ही स्वीकार किया जाता है।
जब हम किसी कार्यालय में किसी कार्य हेतु जाते हैं व अधिकारी सर्वप्रथम यह जानना चाहता है या प्रश्न पूछता है कि “आप कौन हैं ?” तब हम सन्दर्भ के अनुसार अपने नाम के साथ हमारा पद या अपनी फर्म का नाम या पिता का नाम या पति का नाम आदि बताते हैं। हम इतनी जानकारी देते हैं कि जिस कार्य को उस अधिकारी से करवाना चाहते हैं उस कार्य से हमारा सम्बन्ध अधिकारी की समझ में आ जाए। अनेकान्तवाद ऐसे उत्तर को भी इस परिस्थिति में हमारे उचित परिचय के रूप में मान्यता प्रदान करता है।
इसी प्रकार विभिन्न परिस्थितियों में हमारा परिचय विभिन्न रूपों में होता है। कभी छविग्रह के लिये हम 'दर्शक' होते हैं तो कभी ट्रेन के 'यात्री' होते हैं तो कभी भी वकील के लिए ‘मुवक्किल' होते हैं।
इस प्रकार हमारे परिचय परिस्थिति के अनुसार बदलते जाते हैं। हर जगह हमें परिचय देना होता है परन्तु कोई भी हमारे सारे परिचय नहीं सुनना चाहता है। आप बैंक में खाता खुलवाने जायें व वहां अपना परिचय देते हुए कहें कि मैं किसी का पति हूँ, किसी का मुवक्किल हूँ, किसी ट्रेन का यात्री रहा हूँ, आदि-आदि, तो बैंक मैनेजर आपको पागल समझेगा।
* प्रोफेसर, भौतिक विज्ञान, विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन ( म०प्र०) ।