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जैन एवं बौद्ध ध्यान पद्धति: एक अनुशीलन ५१ एवं क्षमता समान नहीं होती है। इसलिए ध्यान करने से पूर्व उन्हें प्रारम्भ में जप का प्रयोग करवाया जाता है, जिससे वे ध्यान में प्रविष्ट हो सकें। आसन, प्राणायाम, जप आदि से ही साधना का प्रारम्भ करना चाहिए।
__ अनुप्रेक्षा- विपश्यना में ऐसा कोई प्रयोग नहीं है। अनुप्रेक्षा के सभी प्रयोग चिन्तन पर आधारित हैं। अनप्रेक्षा के प्रयोग आदतों में परिवर्तन लाने की एक प्रक्रिया है, जिसे पश्चिमी वैज्ञानिक सजेशन और ऑटोसजेशन के प्रयोग कहते हैं। अनुप्रेक्षा का प्रयोग प्रेक्षा का महत्त्वपूर्ण प्रयोग है।३८
प्रेक्षाध्यान पद्धति में इन सभी प्रयोगों के अतिरिक्त लेश्याध्यान, अनिमेष प्रेक्षा, एकाग्रता और संकल्पशक्ति के भी विशेष प्रयोग कराये जाते हैं, जो किसी अन्य पद्धति में प्रचलित नहीं हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि कुछ प्रयोगों में दोनों में समानता नजर आती है, लेकिन इसके अतिरिक्त अन्य प्रयोगों का विपश्यना में अभाव-सा नजर आता है। जबकि प्रेक्षा में इन प्रयोगों के अनेक प्रकारों का अभ्यास कराया जाता है। प्रेक्षा के सभी प्रयोग स्वतंत्र हैं और उनका विकास भी स्वतंत्र रूप से हआ है। इन दोनों ही पद्धतियों को हम अपूर्ण नहीं कह सकते हैं। अपने-आप में दोनों ही पूर्ण पद्धतियाँ हैं, अन्तर है तो केवल प्रयोगों का। सन्दर्भ सूची १. सुरेन्द्र कुमार शर्मा- हठयोग प्रदीपिका, गीताप्रेस, गोरखपुर-१/१७. २. योगी कल्पतरुं नौमि देवदेवं वृषभध्वजं। ज्ञानार्णव-शुभचन्द्राचार्य, परमश्रुत
__ प्रभावक मण्डल, अगास, १९८१, पृ०-३. ३. हिरण्यगों योगस्य वेत्तानान्यः पुरातनः। महाभारत-शान्तिपर्व (पाँचवाँ खण्ड),
गीताप्रेस, गोरखपुर, पृ०-५४०४; ३४९/६५ ।।
पातञ्जल योगप्रदीप-श्री स्वामी ओमानन्दतीर्थ, गीताप्रेस, गोरखपुर, पृ०-६९. ५. तस्य हीन्द्र.....भगवानृषभ देवा योगेश्वरः...... नामाभ्यवर्षत- श्रीमद्भागवत्
_महापुराण-प्रथम खण्ड, गीताप्रेस, गोरखपुर; ५/४/३ । ६. नानायोगचर्याचरणो भगवान् कैवल्यपति ऋषभ- वही-५/५/२६ ७. ऋग्वेद- भाग-४, पद्मभूषण डॉ० श्रीपाद दामोदर सातवलेकर, स्वाध्याय मण्डल,
पारडी, बलसाड, १९८८ पृ०-२६. ८. अत्र विप्रतिपद्यन्ते। परं एव हिरण्यगर्भ इत्येके। संसारीत्यपरे। बृहदारण्यकोपनिषद्
हरिनारायण आप्टे, आनन्द आश्रम संस्कृत ग्रंथावली- १८३६, पृ०-१०९. ९. हिरण्यगर्भस्य परत्वमाद्ये द्वितीये कल्पे संसारित्वं विधियमिति विभाग: १/४/६
वही, पृ०-१०९. १०. तैतिरीयारण्यक (सायण भाष्य) प्रपाठक- १०, अनुवाक- ६२. ११. महापुराण- डॉ० देवेन्द्र कुमार जैन, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली-१९४४;
१२/९५. १२. युवाचार्य महाप्रज्ञ-भेद में छिपा अभेद, जैन विश्व भारती, लाडनूं-१९९१, पृ०-९७.