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________________ जैन दर्शन और कबीर: एक तुलनात्मक अध्ययन १. कबीर हरि रस यौं पिया, बाकी रही न थाकि। पाका कलस कुंभार का, बहुरि न चढ़ई चाकि।। कबीर-ग्रन्थावली (मिश्र), सा० ७, पृ०- ५७ राम रसाइण प्रेम रस, पीवल अधिक रसाल। कबीर पीवण दुर्लभ है, मांगै सीस कलाल।। वही, सा० २, पृ०- ५७ जे एगं जागइ, से सव्वं जाणइ। जे सव्वं जाणइ से एगं जाणइ। -आचारांग, १/३/४, जे ओ एकै जाणियाँ, तौ. जांण्या सब जांण। जे ओ एक न जांणियाँ, तो सब ही जाण अजांण।। -कबीर-ग्रन्थावली (मिश्र), सा ८, पृ०-६०. सबका सहेउं आसाइ कंटया अओमया अच्छहया नरेणं अणासए जो उ संहेज्ज कंटए। वईमए कण्णसरे स पुज्जो। दशवैकालिक ९/३/८ अणी सुहेली सेल की, पड़ला लेइ उसास। चोट सहारै सबद की, तास गरु मैं दास।। कबीर-ग्रन्थावली (मिश्र), सा ७, पृ०- १५९. (७) जे सिया सन्निहिकाथे, गिही पव्वइए न से। दशवकालिक ६/१९. संत न बाधै गांठड़ी, पेट समातां लेइ। सांई सूं सनमुख रहै, जहां मांगै तहां देइ।। कबीर-ग्रन्थावली (मिश्र), सा १०, पृ०- १५०. महुगारसमा बुद्धा, जे भवति अणिस्सिया। नाणा पिंडरया दंता, तेण वच्चंति साहुणो।। दशवकालिक १/५. मीठा खांण मधुकरी, भांति भांति कौ नाज। (८)
SR No.525033
Book TitleSramana 1998 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Shivprasad, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1998
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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