________________
१३४ श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९८ हरिषेणाचार्यकृत बृहत्कथाकोष से उद्धृत हैं। तृतीय परिशिष्ट में भद्रबाहु- चाणक्यचन्द्रगुप्त कथा है जो रामचन्द्रमुमुक्षुकृत पुण्याश्रव कथाकोष से ली गई है। 'चाणक्य कहाणगं' नामक चतुर्थ परिशिष्ट में उत्तराध्ययन की सुबोधा टीका से उद्धृत चाणक्य का कथानक दिया गया है। पञ्चम परिशिष्ट में अकारादिक्रम से शब्दकोष दिया है और अन्तिम परिशिष्ट में महत्त्वपूर्ण शब्दों पर टिप्पणियाँ दी गई हैं। ग्रन्थ में सम्पादक की तीस पृष्ठों की प्रस्तावना में ग्रन्थ के प्रतिपाद्य और उसकी कतिपय ऐतिहासिक समस्याओं पर शोधदृष्टि से विचार किया गया है जिसे पढ़कर पाठक जिज्ञासा निवृत्ति के लिये स्वयं ग्रन्थ को पढ़ने में रुचि लेने लगता है। ग्रन्थ उपयोगी है और पहली बार प्रकाशित होने से इसकी उपयोगिता और भी बढ़ गई है।
प्रो० सुरेश चन्द्र पाण्डे साभार स्वीकार १. पगले पगले प्रकाश (गुजराती) लेखक- पं० श्री रत्नसुन्दर विजय जी मसा० प्रकाशक- रत्नत्रयी ट्रस्ट, श्री प्रवीण कुमार दोशी, २५८, गांधीगली, स्वदेशी मार्केट, कालबा देवी रोड, मुम्बई- ४००००२; पृष्ठ-१०४; मूल्य ४० रुपये, प्रकाशन वर्ष- दिसम्बर १९९६ ई०.
२. प्रवचनगंगा- लेखक एवं प्रकाशक, पूर्वोक्त
३. कर्मस्तव, कर्ता, देवेन्द्रसूरि जी महाराज, विवेचक- पू०सा० हर्षगुणा श्री जी म०सा०, प्राप्तिस्थान- श्री ॐकारसूरि आराधना भवन, सुभाष चौक, गोपीपुरा, सूरत. पृष्ठ १६+२२३; मूल्य ७५/-रुपये, प्रकाशनवर्ष- १९९६ ई०।
४. उपाध्याय श्रीप्यार चंद जी म० सा० : व्यक्तित्त्व एवं कृतित्त्व; संपा०, मनि प्रकाशचन्द्र जी महाराज 'निर्भय'; प्रकाशक- उपाध्याय श्री प्यारचंद जी जैन सिद्धान्तशाला, नीम चौक, रतलाम (मध्य प्रदेश); पृष्ठ- २०+२१४; मूल्यआत्मउत्थान; प्रकाशन वर्ष वि०सं०- २०५२.
५. अपभ्रंश अभ्यास सौरभ, लेखक डॉ० कमलचन्द सोगानी; प्रका०अपभ्रंश साहित्य अकादमी, जैन विद्या संस्थान, दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, श्रीमहावीर जी, राजस्थान; पृष्ठ- १२+२७६; मूल्य-पुस्तकालय संस्करण ८५/- रुपये; छात्र संस्करण- ७५/- रुपये; प्रकाशनवर्ष- १९९६ ई०. (अपभ्रंश भाषा के अध्ययनार्थियों को इस पुस्तक से अपभ्रंश भाषा सीखने में पर्याप्त सहायता मिलेगी क्योंकि डॉ० सोगानी ने उन्हीं को लक्ष्य में रखकर इसकी रचना की है।)