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________________ जैन जगत् १३३ से इन पर विजय प्राप्त करने की प्रेरणा दी है। इसके मूल में द्रुतविलम्बित तथा पद्यानुवाद में मुक्तक छन्द का प्रयोग किया गया है साथ ही प्रत्येक श्लोक के अन्त में अन्त्यानुप्रास भी रखा है। सुनीतिशतक - 'यथा नाम तथा गुण' इस उक्ति को चरितार्थ करते हुए आचार्य इस शतक को बड़े ही सरल ढंग से रचा है। यह रचना सुबोध और प्रसाद गुण युक्त है। लेखक द्वारा इसके मूल में उपजाति तथा पद्यानुवाद में मुक्तक छन्द का प्रयोग किया गया है। पञ्चशती की टीका एवं हिन्दी रूपान्तरण डॉ० पं० पन्नालाल साहित्याचार्य जी ने बड़े ही सुन्दर ढंग से किया है। इस प्रकार यह 'पञ्चशती' साहित्यरसिकों, उदीयमान लेखकों और मुमुक्षुओं को अपने अभीष्ट स्थान को प्राप्त करने में एक सेतु का कार्य करेगी, ऐसा मेरा विश्वास है। पुस्तक का आवरण सुन्दर एवं मुद्रण कार्य निर्दोष है। पुस्तक संग्रहणीय है । डॉ० जयकृष्ण त्रिपाठी भद्रबाहु - चाणक्य चन्द्रगुप्त कथानक एवं कल्किवर्णन, रचयिता - महाकवि रइधू, सम्पादक एवं अनुवाद- डॉ० राजाराम जैन, प्रकाशक - श्री दिगम्बर जैन युवक संघ, पृष्ठ संख्या- ११२, मूल्य २५ रुपये। यह अपभ्रंश भाषा में रचित एक लघु ऐतिहासिक कृति है । इसके रचयिता अपभ्रंश भाषा के महाकवि रइधू हैं, जिनका काल लेखक के अनुसार वि० सं० १४४० से १५३० माना गया है। इसमें अन्तिम श्रुतकेवली भद्रबाहु, चन्द्रगुप्तमन्त्री चाणक्य, राजा चन्द्रगुप्त, नन्द एवं मौर्य वंश तथा प्रत्यन्त राजा (पर्वतक ? ) के विषय में संक्षिप्त वर्णन है। सम्पादक का कहना है कि इस रचना की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें श्रुतपञ्चमी पर्वारम्भ, कल्कि अवतार, एवं षट्काल वर्णन के संक्षिप्त प्रकरण भी उपलब्ध हैं जो अन्य भद्रबाहु, चाणक्य और चन्द्रगुप्त के कथानकों में दृष्टिगोचर नहीं होते। दिगम्बर जैन परम्परा के अनुसार राजा चन्द्रगुप्त (मौर्य) ने आचार्य भद्रबाहु से जैन दीक्षा ली थी। वे दश पूर्वधारी होकर विशाखाचार्य के नाम से प्रसिद्ध हुए । समग्र ग्रन्थ में २८ कडवक (अध्याय) हैं। प्रत्येक के आरम्भ में सम्पादक ने कथावस्तु का हिन्दी तथा अंग्रेजी में शीर्षक दिया है जिससे पाठक को अध्याय के विषयवस्तु की संक्षेप में जानकारी हो जाती है। बाएँ पृष्ठ में मूल ग्रन्थ तथा दाहिने पृष्ठ पर इसी अंश का हिन्दी अनुवाद भी दिया गया है । ग्रन्थ के अन्त में छ: उपयोगी परिशिष्ट भी दिये गए हैं। प्रथम दो परिशिष्ट क्रमशः भद्रबाहु कथानकम् और चाणक्य मुनिकथानकम्
SR No.525033
Book TitleSramana 1998 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Shivprasad, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1998
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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