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________________ १३० श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९८ श्री दुलीचन्द जैन द्वारा १९९३ में प्रकाशित लोकप्रिय ग्रन्थ “जिनवाणी के मोती' का अंग्रेजी रूपान्तर है। इसमें सम्पूर्ण आगम गन्थों का आलोडन करके प्रेरणादायक सूक्तियों का संकलन किया गया है। यह कृति निश्चय ही संकलयिता के व्यापक अध्ययन की निष्पत्ति है। यह ग्रन्थ जहां एक ओर एक सामान्य अध्ययनकर्ता के लिए उपयोगी है वहीं विशिष्ट विद्वानों के लिए भी लाभदायक है। वर्तमान तेज भागती हई जिंदगी में जब हम व्यक्तिगत और सामाजिक विघटन के मोड़ पर खड़े हैं, ऐसी पुस्तक हमारे जीवन की जटिलताओं को सुलझाकर हमें एकीकृत करने में मदद दे सकती है। भौतिकता की अंधी दौड़ में भागते हुए हम लोग आज जीवन के सच्चे आनंद की वास्तविक दिशा को भूल गए हैं। आज हमें अपने सामाजिक जीवन के प्रति अविश्वास है, हमारा अपना पारिवारिक जीवन अब हमें कल्याण और सुरक्षा का पथ दिखाने में असमर्थ है, अपने आर्थिक जीवन की जटिलताओं से हम विभ्रमित हो चुके हैं, चिकित्सा तकनीकी के उच्चतम विकास के बावजूद हम तन और मन से स्वस्थ नहीं हैं, जिंदगी की नित्य नई परेशानियां और पेचीदगियां समय समय पर प्रकट होकर हमें त्रस्त कर रही हैं। बदलते हुए परिवेश का मुकाबला करने का सबसे प्रभावशाली उपाय है कि हम व्यक्तिगत स्तर पर बदलाव लावें। एक बार हमारे अपने दृष्टिकोण में बदलाव आ गया, तो फिर हम बाकी सभी क्षेत्रों में परिवर्तन सुगमता से कर सकते हैं। इसके लिए हमारे देश के महर्षियों ने हमें जीवन जीने का एक ऐसा मार्ग बताया था जो नैतिक मूल्यों से प्रेरित सर्वजन कल्याणकारी था। जैन धर्म का यह विश्वास है कि प्रत्येक आत्मा परमात्मा बन सकती है। हर व्यक्ति के भीतर अपनी दिव्यताओं को प्रकट करने की अद्भुत क्षमता है। इन जीवन मूल्यों की चिरंतनता ने ही संकलनकर्ता को ज्ञान की उस अनंत राशि को वर्तमान समय के लिए उजागर करने की प्रेरणा दी। उनका विश्वास है कि ये सूत्र वर्तमान जीवन की समस्याओं का सही समाधान प्रस्तुत कर सकते हैं। इस ग्रन्थ में दो खंड हैं। प्रथम खंड में तीर्थंकर महावीर के जीवन और संदेश पर संक्षिप्त प्रकाश डाल कर लेखक ने जैन आगम साहित्य का परिचय दिया है और इस प्रकार द्वितीय खंड की पृष्ठभूमि तैयार की है, जो भगवान् महावीर की श्रेष्ठ सक्तियों का संकलन है। द्वितीय खंड को बारह अध्यायों में निबद्ध कर ६५० सूक्तियों को ७१ विषयों में वर्गीकृत किया है। ये अध्याय हैं :- मंगल, आत्मा, ज्ञान और क्रिया, तत्त्व, कषाय, मन, कर्म, भावना, धर्म, ध्यान, शिक्षा आदि। ये सभी सूक्तियां शिक्षाप्रद, प्रेरक एवं मननीय हैं। इस प्रकार व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक विकासयात्रा के लिए यह संकलन उपयोगी है।
SR No.525033
Book TitleSramana 1998 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Shivprasad, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1998
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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