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________________ जैन जगत् १२९ सोऽव्याबाधसुखाख्यं प्राप्स्यत्याचिरेण परमार्थम्।। प्रतिपाद्य विषय के महत्त्व के अतिरिक्त 'तत्त्वार्थाधिगमसूत्र' का एक यह भी महत्त्व है कि जैन विद्या का यह प्रथम ग्रन्थ है जिसकी संस्कृत में रचना हुई है। उमास्वाति की इस सूत्रशैली के अनुसार परवर्ती अनेक जैनाचार्यों ने संस्कृत में व्याकरण,अलंकार शास्त्र आदि के ग्रन्थों की रचना की। ___ यह ग्रन्थ कणाद के वैशैषिक सूत्रों की तरह दश अध्यायों में विभक्त है। समग्र सूत्रों की संख्या ३४४ है। जैन परम्परा श्रद्धा प्रधान है अत: उमास्वाति ने युक्ति-प्रयुक्ति न देते हुए और पूर्वपक्ष का उपस्थापन न करते हुए सिद्धान्त को प्रतिपादित किया है। दशाध्यायी इस ग्रन्थ के पहले अध्याय में 'ज्ञान' की मीमांसा की गई है। दूसरे से पाँचवें तक ‘ज्ञेय' की तथा छठे से दसवें तक ‘चारित्र' की विवेचना की गई है। सूत्र के अतिरिक्त उमास्वाति का ही स्वोपज्ञ भाष्य भी है। इस ग्रन्थ का प्राधान्येन प्रतिपाद्य मोक्षमार्ग है, क्योंकि ग्रन्थकार का यह सुस्पष्ट मत है कि इस संसार में मोक्ष मार्ग के बिना कोई उपदेश संभव नहीं है नर्ते च मोक्षमार्गदितोपदेशोऽस्ति जगति कृत्स्नेऽस्मिन्। तस्मात्परमिममेवेति मोक्षमार्ग प्रवक्ष्यामि।। सम्पादक का कहना है कि यद्यपि इस ग्रन्थ के अनेक संस्करण उपलब्ध हैं तथापि केवल भाष्यसहित सूत्रपाठ वाले संस्करण न होने से इस संस्करण की उपादेयता है। इस ग्रन्थ के प्रारम्भ में ३१ कारिकाएँ हैं जो कि ग्रन्थकार ने भूमिकारूप से प्रस्तुत की हैं। तदनन्तर भाष्यसहित चार परिशिष्ट दिये गए हैं। प्रथम परिशिष्ट में केवल सूत्रपाठ है, द्वितीय परिशिष्ट में अकारादिक्रम से सूत्रों की अनुक्रमणिका दी गई है। तृतीय परिशिष्ट में दिगम्बर तथा श्वेताम्बर आम्नायों में स्वीकृत पाठों की तुलना है। चतुर्थ परिशिष्ट में अकारादिक्रम से विशिष्ट शब्दों की सूची दी गई है। ग्रन्थ के प्रारम्भ में सम्पादक की सुललित संस्कृत में १४ पृष्ठों की सुन्दर भूमिका दी गई है, जो कि सम्पादक की मौलिक प्रतिभा की परिचायक है। ग्रन्थ का मुद्रण भी सर्वथा हृद्य और निरवद्य है। प्रो० सुरेश चन्द्र पाण्डे Pearls of Jaina Wisdom (जिनवाणी का अमृत) लेखक- दुलीचन्द जैन, प्रकाशक, पार्श्वनाथ विद्यापीठ एवं जैनोलाजिकल रिसर्च फाउन्डेशन, चेन्नई, मूल्य१२० रुपये।
SR No.525033
Book TitleSramana 1998 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Shivprasad, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1998
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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