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जैन जगत्
१२७ आग्रह और अनाग्रह के बीच मनुष्य झूलता रहता है। वैचारिक परिपक्वता के अभाव में वह एक मत पर दृढ़ नहीं रह पाता है। द्वन्द्व के परिक्षेत्र में भटकता रहता है। वह प्राय: ऐसे चिन्तकों के सान्निध्य पाने को लालायित रहता है जो उनके द्वंद्वों को समाप्त कर सके। यद्यपि यह पूर्णत: संभव नहीं है, फिर भी कुछ लोग इस दिशा में प्रयत्न करते हैं। प्रस्तुत पुस्तक के लेखक महोपाध्याय चन्द्रप्रभ सागर एक प्रभावशाली चिंतक हैं। उन्होंने मानव-मन की चंचलता एवं उसके मनोविज्ञान का सूक्ष्म अवलोकन किया है। पुस्तक का मुद्रण निर्दोष और साजसज्जा आकर्षक है।
___ डॉ० रज्जन कुमार पं० आशाधरः व्यक्तित्त्व एवं कर्तृत्व लेखक- पं० नेमचन्द डोणगांवकर प्रकाशक- अखिल भारतीय दिगम्बर जैन बघेरवाल संघ, रामपुरा, आर्य समाज रोड, कोटा- ६, प्रथम संस्करण- १९९५ आकार डिमाई, हार्ड बाउण्ड, पृ०- २८० मूल्यपुस्तकालय संस्करण- ५० रुपये, साधारण संस्करण- २५ रुपये।
पं० नेमचन्द जी डोणगाँवकर द्वारा लिखित 'पं० आशाधर व्यक्तित्व और कर्तृत्व' नाम पुस्तक एक ऐसे बहुमुखी प्रतिभा के धनी विद्वान् के विषय में लिखा गया है जो अनेक ग्रन्थों के रचयिता हैं। पं० आशाधर जी द्वारा लिखित अनगार तथा सागार धर्मामृत की प्रशस्ति द्वारा यह ज्ञात होता है कि उनके पिता का नाम ‘सल्लक्षण' तथा कुल का नाम व्याघेरवाल था। यद्यपि ये गृहस्थ थे तथापि वीतरागी थे। उन्होंने अपने पाण्डित्य के प्रभाव से अनेक राजाओं को भी प्रभावित किया। इनके समान धर्म प्रचार करने वाला तथा साहित्य का निमार्ण करने वाला बिरला ही होता है। ऐसे बहुश्रुत विद्वान् के विषय में जिस निष्ठा और लगन के साथ लेखक ने (उक्त पुस्तक में) प्रकाश डालने का काम किया है, वह सराहनीय है।
पुस्तक की साज-सज्जा आकर्षक एवं मुद्रण-कार्य निर्दोष है। पुस्तक एक उच्चकोटि के विद्वान् के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आधारित होने से सर्वजनोपयोगी होने के साथ-साथ संग्रहणीय भी है।
डॉ० जयकृष्ण त्रिपाठी श्री समाधि शतक विधान, रचयिता- आ० देवनन्दि अनुवादक- राजमल पवैया संपादक-डॉ० देवेन्द्र कुमार जी शास्त्री, प्रकाशक- भरत पवैया, तारादेवी पवैया ग्रन्थमाला, ४४ इब्राहिमपुरा, भोपाल- ४६२००१, प्रथमावृत्ति नवम्बर १९९५, आकार-डिमाई, पेपर बैक, पृ०- १११, मूल्य १० रुपये।
छठी शताब्दी के सुप्रसिद्ध आचार्य, अनेक ग्रन्थों के टीकाकार, जैनागम के