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जैन जगत् पर प्रकाश डाला गया है। पुस्तक की विशेषता यह है कि इसके अन्त में आचार्य श्री की जीवन-पत्री (जन्म कुण्डली) का भी समावेश किया गया है, जो ज्योतिष की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। इस अनुपम कृति के लिए लेखक बधाई के पात्र हैं। पुस्तक की छपाई एवं साज-सज्जा निर्दोष है। केवल पुस्तकालयों के लिए ही नहीं अपितु प्रत्येक जैन परिवार में यह पुस्तक पठनीय एवं संग्रहणीय है।
डॉ० सुधा जैन विश्व-प्रसिद्ध जैनतीर्थः श्रद्धा एवं कला, लेखक- महोपाध्याय ललित प्रभ सागर, प्रकाशक- श्री जितयशा फाउंडेशन, ९ सी., एस्प्लानेड रो ईस्ट, कलकत्ता७०००६९, पृ०-१४४, मूल्य-२०० रुपये।
महोपाध्याय श्री ललित प्रभसागरजी द्वारा रचित विश्व-प्रसिद्ध जैन तीर्थः श्रद्धा एवं कला में राजस्थान, गुजरात, बिहार, उत्तर प्रदेश तथा कर्नाटक में पाए जानेवाले जैन तीर्थ स्थलों के मनमोहक चित्र एवं उनका सुरुचिपूर्ण वर्णन है। पुस्तक के अवलोकन से धर्म एवं कला दोनों के प्रति उत्साह में वृद्धि होती है। धर्म में आस्था रखने वालों को तीर्थस्थानों पर गए बिना भी बहुत हद तक पुण्य लाभ हो सकता है यदि वे पुस्तक में चित्रित धर्मात्माओं के प्रति अपने मन को केन्द्रित करें। कोई कला प्रेमी कला की ऊँचाई का बोध कर सकता है यदि उसमें कला ग्रहण्यता है। इसी लिए पुस्तक को श्रद्धा और कला के नाम से भी सम्बोधित किया गया है। लेखक की विभिन्न रचनाओं में यह एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण कृति है जिसके लिए वे बधाई के पात्र हैं। पुस्तक की छपाई आदि आकर्षक है। इस तरह यह रचना जैन धर्म एवं कला को एक नई देन है।
डॉ० बशिष्ठ नारायण सिन्हा द्रव्य संग्रह, हिन्दी पद्यानुवादक- आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज, प्रकाशक- श्रीमती समताबहेन खंधार चेरिटेबल ट्रस्ट, २, आशियाना स्टर्लिंग पार्क, ड्राइव-इन सिनेमा के पास, अहमदाबाद- ३८००५२, पृ०-७६, मूल्य- स्वाध्याय।
___ आचार्य श्री नेमिचन्द्र विरचित 'द्रव्य संग्रह' एक प्रसिद्ध ग्रन्थ है। आकार में यद्यपि यह बहुत छोटा है परन्तु विषय की दृष्टि से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। इसमें ६ द्रव्यों, ५ अस्तिकायों, ९ तत्त्वों, ५ पदार्थों, रत्नत्रय, पंचपरमेष्ठी के स्वरूप, ध्यान के लक्षण तथा उपाय आदि के वर्णन हैं। किन्त जीव का विवेचन अपने आप में अनोखा है। इस महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जाए तो वह लोकहित के साथ-साथ जैन चिन्तन के प्रचार-प्रसार के लिए भी श्रेयष्कर होगा। सम्भवतः इसी दृष्टि से आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने इसका हिन्दी पद्यानुवाद किया है और श्री परिमल किशोर भाई खंधार ने इसके विविध रूपान्तरणों को संकलित किया है। आचार्य