SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रमण पुस्तक-समीक्षा जेना हैये श्रीनवकार तेने करशे शुं संसार, संपादक- अंचलगच्छीय गणि महोदयसागर प्रकाशक-श्री कस्तूर प्रकाशन ट्रस्ट, १०२, लक्ष्मी अपार्टमेण्ट, डॉ० एनी बेसेण्ट रोड, वरली, मुंबई-१८, आकार-क्राउन अठपेजी, हार्ड बाउण्ड, पृ० - २२१+१८, मूल्य-९० रुपये। सभी धर्मों के धर्मावलम्बी अपने आराध्य की स्तुति करने के लिए किसी न किसी प्रार्थना या मन्त्र को प्रमुखता देते हैं। इसी क्रम में जैन धर्मावलम्बियों ने ‘णमोकार मन्त्र को महत्त्वपूर्ण माना है। उक्त मन्त्र को आधार बनाकर पूर्व में अनेक पुस्तकों का प्रकाशन किया जा चुका है किन्तु प्रस्तुत 'जेना हैये श्रीनवकार तेने करशे शं संसार' नामक पुस्तक उन (पूर्व प्रकाशित) पुस्तकों का अपवाद होगी, क्योंकि इसमें गुजराती भाषा में णमोकारमन्त्र पर सभी दृष्टिकोणों से गहराई से विचार किया गया है। आशा है इससे जैन धर्मानुरागियों एवं शोधार्थियों को समुचित लाभ प्राप्त होगा। पुस्तक की साज-सज्जा आकर्षक एवं आवरणं सुन्दर है। उक्त कारणों से पुस्तक संग्रहणीय है। डॉ० जयकृष्ण त्रिपाठी श्रमण संस्कृति- संपादक- उम्मेद मल गाँधी, प्रकाशक- श्री अ०भा०सा० जैन श्रावक संघ, ५८, भामाशाह मार्केट, उदयपुर-१, वर्ष१, प्रवेशांक अक्टू० ९६, पृ०-६२, आकार-डिमाई, पेपर बैक, शुल्क (१ प्रति) ५ रु०। जिस प्रकार एक छोटा सा पीपल या बरगद का बीज अपने अनुकूल मिट्टी, खाद, पानी और धूप की सहायता पाकर एक बड़े वृक्ष का रूप धारण कर लेता है उसी प्रकार मानव भी सम्यग्ज्ञान, दर्शन और चारित्र के बल पर मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। इसके लिये मोक्ष के अनुकूल उद्बोधन की आवश्यकता होती है जो श्रमण संस्कृति में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। __ उक्त (श्रमण संस्कृति) पत्रिका का शुभारम्भ अभी कुछ समय पूर्व ही हुआ है किन्तु इसके विषय वस्तु और विषय-चयन से यह ज्ञात नहीं हो पा रहा है कि इसका
SR No.525033
Book TitleSramana 1998 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Shivprasad, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1998
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy