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जैन जगत् : 95
भानीय लोगों के वक्तव्य के बाद मुनि श्री गुलाबचन्द्र जी 'निर्मोही' ने 'भगवान महावीर की समन्वयात्मक दृष्टि' पर अपने सारगर्भित वक्तव्य से लोगों को लाभान्वित किया। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि श्री विनोद कुमार 'विवेक' ने किया।
अमृत महोत्सव परमारक्षत्रियोद्धारक, राष्ट्रसंत, तपागच्छीय आचार्य परममूज्य श्रीमद् विजयइन्द्रदिन सूरीश्वरजी महाराज का ७५ वां जन्मोत्सव कार्तिकावदि ६ को दिल्ली, पंजाब, राजस्थान
और गुजरात के विभिन्न स्थानों में सोल्लास मनाया गया। इस पुनीत अवसर पर भव्य कार्यक्रम आयोजित किये गये।
जैन हिन्दू ही हैं, हिन्दू समाज से भिन्न नहीं
-श्री सौभाग्यमुनि 'कुमुद' भारतवर्ष में जैन संस्कृति हिन्दू समाज से अलग नहीं रही है, जैन समाज सदियों से हिन्दू ही माना जाता रहा है। दोनों ही संस्कृतियों में खानपान, रहन-सहन, "वेशभूषा सभी कुछ एक ही है, साथ ही जैन समाज अपने व्यावहारिक कार्यकलाप जैसे शादी विवाह, मरणोत्तर क्रियाएं आदि हिन्दू-विधियों के अनुसार ही करता है। लौकिक त्योहार, उत्सव आदि भी आम हिन्दुओं के साथ ही मनाता रहा है। फिर यह हिन्दुओं से अलग कैसे? उक्त विचार श्रमणसंघीय महामंत्री श्री सौभाग्य मुनिजी “कुमुद" ने धुलिया में १ नवम्बर १९६७ को देश के कोने-कोने से आये जैन धर्मावलम्बियों की धर्मसभा में व्यक्त किये।
मुनि कुमुद जी ने कहा कि भारत की चार संस्कृतियां हैं: हिन्दू, इस्लाम, पर्सिया और आंग्ल । इस्लाम, पर्सिया और आंग्ल ये तीन संस्कृतियां भारत को बाहर से प्राप्त हुई हैं। हिन्दू संस्कृति भारत की संस्कृति है। जैन, वैदिक, बौद्ध, सिक्ख उसी संस्कृति के अंग हैं। उपासना पद्धति के आधार पर किसी संस्कृति को टुकड़ों में बाँटते जाना बिल्कुल उचित नहीं है।
मुनिश्री ने सभा को संबोधित करते हुए कहा है कि जैन अपने अनुयायियों की संख्या सीमित में हो सकते हैं किन्तु वे हिन्दू संस्कृति के ही अंग हैं।
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