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________________ 86 : श्रमण/अक्टूबर-दिसम्बर /१६६७ वि०सं० २००८ में स्वनामधन्य, जैन साहित्य महारथी श्री अगरचन्द नाही अपने पुत्र के विवाह के संदर्भ में जब ग्वालियर गये, तो वहां वे डॉ० क्राउझे को निमंत्रण देने उनके बंगले पर गये और फाटक खटखटा कर बोले-क्या बहिन जी भीतर हैं? जब डॉ० क्रउझे ने फाटक खोला तो देखा-श्री नाहटाजी खड़े हैं। डॉ० क्राउझे ने तत्काल कहा-भाई साहब! मुझे बहिन के नाम से शायद संबोधित करने वाले पहले व्यक्ति आप ही हैं। यहाँ के सभी जैन-जैनेतर, भाई-बहिन डाक्टर साहब कर ही मुझे सम्बोधित करते हैं। इस प्रकार डॉ क्राउझे एक अत्यन्त विनयशील विदुषी महिला थीं। डॉ० क्राउजे का निधन २८ जनवरी सन् १९८० में ग्वालियर में हुआ। वृद्धावस्था में कोई परिचारिका उपलब्ध न होने के कारण वे गिरजाघर चली गई थीं। वहीं उनका निधन हुआ। वहीं समाधि बनी हुई है। वर्तमान में राष्ट्रसंत जैनाचार्य श्री पद्मसागरसूरि जी से डॉ० क्राउझे के बारे में मैंने जानकारी चाही और उनसे डॉ० क्राउझे के बारे में एक संस्मरण लिखकर देने की आग्रहपूर्वक विनती की तो उन्होंने निम्न संस्मरण स्वहस्त लिखकर भेजा है, जो इस प्रकार हैश्रीमान् सुश्रावक श्री हजारीमलजी बांठिया, योग्य धर्मलाभ। डॉ० सुभद्रा देवी (शर्लोटे क्राउझे) के विषय में-इतना ही मैं लिखूगा कि बाल्य जीवन में जब मैं ७वीं कक्षा में, शिवपुरी श्री वीरतत्त्व प्रकाशन मंडल में छात्रावास में १६४६-५० में अभ्यास करता था, तब उन्हें नजदीक से देखने का अवसर मुझे मिला था। जिनेश्वर देव की भक्ति-पूजा साथ में करने का मौका भी मिला है। उनकी पूजा, चैत्यवंदन, स्तुति खूब भावपूर्ण और अनुमोदनीय थी। वे खूब भाव विभोर होकर पूजा करती थीं। बालकों के प्रति उनका स्नह भी प्रशंसनीय देखा। जब-जब उनका मुनिराज श्री विद्याविजय जी म० के दर्शनार्थ शिवपुरी आना होता तब बच्चों के लिये मिठाई-फल आदि कुछ न कुछ जरूर लेकर आती थीं। बच्चों के साथ में खेल में भी कई बार हिस्सा ले लेती थीं। हिन्दी-गुजराती भाषा का भी अच्छा ज्ञान था, उच्चारण भी सही करती थीं। उनका चेहरा भी उनकी धर्मप्रियता और सात्त्विकता का परिचय सहज ही देता था। मेरी स्मृति में आज तक उनकी भक्तिभावना जुड़ी हुई है, जो हमेशा जुड़ी रहेगी। -पद्मसागर सूरि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525032
Book TitleSramana 1997 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1997
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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