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________________ 78 : श्रमण/अक्टूबर-दिसम्बर/१६६७ यदि सभी कारण सभी कार्य करें तो उनमें अभेद का प्रसंग आयेगा। समस्त कारण एक ही कारण के नामान्तर सिद्ध होंगे। इससे एक ही कारण के द्वारा जगत् के समस्त कार्यों की उत्पत्ति मानने का एकान्तवाद घटित होगा। अथवा पाँचों के समवाय से ही प्रत्येक कार्य की उत्पत्ति मानने पर एकान्तनियतिवाद का प्रसंग आयेगा, क्योंकि प्रत्येक कार्य में नियतिरूप कारण अनिवार्यतः होने से अन्य चार कारण भी नियत हो जायेंगे, क्योंकि कार्य के साथ सम्पूर्ण कारण सामग्री का नियत होना ही एकान्तनियतिवाद का लक्षण है, जैसा कि गोम्मटसार कर्मकाण्ड में कहा गया है: जत्तु जदा जेण जहा जस्य य णियमेण होदि तत्त तदा। तेण तहा तस्स हवे इति वादो णियदिवादो तु।। अर्थात् जिसका, जो, जब, जिसके द्वारा, जिस विधि से नियमपूर्वक होना है, उसका, वह, उस समय, उसके द्वारा, उस विधि से होता है। इस प्रकार सब कुछ नियत - मानना नियतिवाद है। एकान्तनियतिवाद जैनसिद्धान्त के विरुद्ध है। सूत्रकृतांग की पूर्वोद्धृत गाथा इसकी साक्षी है। आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती ने भी 'कथंचित्' शब्द के बिना नियतिवाद को एकान्तवाद और मिथ्या बतलाया है: परसमयाणं मिच्छं खलु होदि सव्वहा वयणा। जइणाणं पुण वयणं सम्मं खु कहं चि वयणादो।। गोम्मटसार (कर्मकाण्ड ८६४-८६५) अथवा पाँचों के समवाय से प्रत्येक कार्य की उत्पत्ति मानने पर किसी भी कार्य के उत्पन्न न हो पाने का प्रसंग उपस्थित होगा,क्योंकि कालादि पाँचों कारण जल और अग्नि के समान परस्परविरुद्धस्वभावी हैं। अतः जैसे जल और अग्नि के समवाय से शीतलतारूप समान कार्य उत्पन्न नहीं हो सकता, वैसे ही स्वभाव और पूर्वकृत कर्म के समवाय से चैतन्यभावरूप परिणामिकभाव की सिद्धि संभव नहीं है। जहाँ इन परस्परविरुद्ध कारणों का समवाय होगा वहाँ ये सुन्द-उपसुन्द के समान परस्परविरुद्ध कार्य उत्पन्न करके एक-दूसरे के कार्य का विघात करेंगे। एक ओर जहाँ स्वभावरूप कारण, कार्य को अनादि-अनन्त बनायेगा, वहीं काल तथा कर्मरूप कारण उसकी अनादि-अनन्तता' मिटाकर सादि-सान्त बनाने का प्रयत्न करेंगे। स्वभावरूप कारण आत्मा को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525032
Book TitleSramana 1997 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1997
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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