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षट्प्राभृत के रचनाकार और उसका रचनाकाल : 49
- हमारे इस सूक्ष्म भाषा अध्ययन-विश्लेषण से भी यही सिद्ध होता है कि 'प्रवचनसार' और 'षट्प्राभृत' की भाषा के स्वरूप के काल में बहुत बड़ा अन्तर है तथा 'षट्प्राभृत' और 'प्रवचनसार' के रचनाकार एक ही आचार्य कदापि नहीं हो सकते।
डॉ० ए०एन० उपाध्ये W. Denecke के इस मत को कि 'षट्प्राभृत' श्री कुन्दकुन्दाचार्य की रचना नहीं हो सकती और यह ग्रंथ कुन्दकुन्दाचार्य से परवर्ती काल का है नहीं मानते और दिगम्बर जो जैन परम्परा चली आ रही है उसे ही मान्य रखने की सलाह देते हैं। उनका जो (argument) तर्क-दलील है उसे उनके ही शब्दों में यहाँ पर उद्धृत (अंग्रेजी में) किया जा रहा है
W. Denecke doubts Kundakunda's authorship, but he gives no definite reasons. Dialectically he finds that six pähudas are younger than Samayasāra etc; but this can not be a safe guide, unless we are guided by critical editions. The reason for the presence of Apabhramśa forms in these pāhudas, as compared with Pravacanasāra, I have explained in my discussion on the dilect of Pravacanasāra. It is imaginable that traditionaly compiled texts might be attributed to Kundakunda because of his literary reputation;........In conclusion I would say that these pāhudas contain many ideas, phrases and sentences which are quite in tune with the spirit and phrasiology of Pravacansāra.3
उपरोक्त उद्धरण में उनका यह कहना कि 'षट्प्राभृत' का संस्करण समीक्षित सम्पादन नहीं है और इसमें 'प्रवचनसार' के समान ही ideas, phrases और entences प्राप्त हो रहे हैं इसलिए उसे चालू परम्परा के विरुद्ध परवर्ती काल की रचना मानना उचित नहीं होगा। किसी भी परवर्ती काल के ग्रंथ में पूर्ववर्ती काल के ग्रंथ के समान विषय-वस्तु और शैली का पाया जाना एकान्ततः यह साबित नहीं करता कि ऐसी परवर्ती काल की कृति अपने से पूर्ववर्ती काल की रचना के समय में ही रची गयी होगी। उन दोनों के भाषा-स्वरूप पर भी विचार किया जाना चाहिए। 'षट्प्राभृत' की समीक्षित आवृत्ति का क्या अर्थ होता है? क्या उसमें से ऐसी गाथाएँ विक्षिप्त मानी जाए जिनमें अपभ्रंश के स्पष्ट प्रयोग हैं या ऐसी गाथाओं की भाषा का मूल स्वरूप अपभ्रंश से प्रभावित नहीं था परन्तु बाद में काल के प्रभाव से उसमें अपभ्रंश के प्रयोग घुस गये, यदि ऐसा माना जाय तो यह उपयुक्त नहीं है। 'षट्प्राभृत' में सिर्फ पाँच दस प्रयोग ही अपभ्रंश
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