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________________ दशाश्रुतस्कंधनिर्युक्ति : अन्तरावलोकन : 43 के होते हैं-विपाक से बन्ध, अविपाक से बन्ध और तदुभय बन्ध । क्षेत्र और काल की दृष्टि से विचार करते हुए कहा गया है जिस क्षेत्र में बन्ध हो वह क्षेत्र बन्ध और जिस काल में बन्ध हो वह काल बन्ध है । भावनिक्षेप से (निदान) में कषाय बन्ध अधिकार अनेक विधियों और अर्थों में होता है। भाव निदान इहलौकिक और पारलौकिक दो प्रकार का होता है । प्रस्तुत अध्ययन में पारलौकिक बन्ध का कथन है। निदान - दोष के कारण श्रमण का भव-भ्रमण अवश्यम्भावी बताया गया है। श्रमण जन्म-मरण से मुक्त कैसे होता है और भव-भ्रमण क्यों करता है, इस परिप्रेक्ष्य में निर्दिष्ट है कि अदूषित मूल और उत्तरगुण वाला, सदा संसार मे अनासक्त, भक्त (आहार), उपाधि और शय्यासन में सदा शुद्धता और एकान्त का सेवन करने वाला तथा सदा अप्रमत्त श्रमण मोक्षगामी होता है । तीर्थंकर, गुरुओं और साधुओं में भक्ति-युक्त, इन्द्रियजयी प्रायः सिद्ध होता है । इसके विरुद्ध विषयाभिलाषी और असंयत को मोक्ष नहीं होता, निदान और संदान करने वाले निश्चित रूप से इस संसार में आते हैं। निदान दोष के कारण संयम मार्ग पर प्रयत्नशील भी श्रमण निश्चित रूप से उत्पत्ति या जन्म पाता है या संसार प्राप्त करता है । अतः अनिदान श्रेयस्कर है। I इस प्रकारसंक्षेप में दशाश्रुतस्कन्ध निर्युक्ति का परिचय संक्षेप में प्रस्तुत है 1 सन्दर्भ (१) मूल एवं चूर्णि सहित, मणिविजयगणि ग्रन्थमाला सं० १४, भावनगर १९५५, पृ० ४२, १८४, प्रताकार । (२) नियुक्तिसंग्रह, सं० विजयजिनेन्द्रसूरि, हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला सं० १८६, लाखाबावल, १६८६ पृ० ४७६-४६६ । (३) निशीथसूत्रम् भाष्य एवं चूर्णि सहित, स० आचार्य अमरमुनि ग्र०मा०सं० ५, भारतयी विद्या प्रकाशन, दिल्ली और सन्मति ज्ञानपीठ, राजगृह, भाग-३, उद्देशक १०, गाथा ३१३४८-३२०६, (४) कल्पसूत्र, मूल-चूर्णि, पृथ्वीचन्द्रसूरि कृत टिप्पण सहित सम्पा०, मुनि पुण्यविजय जी, जैन कला साहित्य संशोधक कार्यालय सिरीज़ नं० ५, साराभाई मणिलाल वाब, अहमदाबाद, १६५२, पृ० ८५-१११ (५) संग्रा० एच०आर० कापडिया, गवर्नमेण्ट कलेक्शन आव मैनुस्क्रिप्ट्स भाण्डारकर ओरिएण्टल रिसर्च इंस्टीच्यूट, पूना १६३६, खण्ड २२, भाग २, पृ० ६७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525032
Book TitleSramana 1997 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1997
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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