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42 : श्रमण/अक्टूबर-दिसम्बर/१६६७
भट्टा का, माया में पाण्डुरार्या का और लोभ में आर्यममु का दृष्टान्त निर्दिष्ट है। श्रमणों को संयम में आत्मा योजित करने का उपदेश है। इस अध्ययन के अन्त में उपदेश दिया गया है कि ज्ञानार्थी, तपस्वी तथा असहिष्णु को, बरसात होने पर भी, यतनापूर्वक गोचरी ग्रहण करनी चाहिए।
नवम 'मोहनीय' में मोह का नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव निक्षेपों में से भाव निक्षेप द्वारा कथन करने का निर्देश है। द्रव्य निक्षेप से मोह सचित्त और अचित्त दो प्रकार का है। सचित्त मोह धातु, गो, अन्नादि और अचित्त मोह गृह, धन आदि है। भाव मोह संघात या सामान्य और विभाग रूप दो प्रकार का होता है। भाव मोह संघात दृष्टि से एक प्रकृति और विभाग दृष्टि से अनेक प्रकृति होता है।
__ कर्मप्रवाद में वर्णित अष्टविधकर्म ही संक्षेप में मोह कहा गया है। उसके अनेक एकार्थक हैं। तीर्थंकरों के अनुसार साधु, गुरु, मित्र, बान्धव, श्रेष्टि और सेनापति के वध में गुरुबन्ध या महाबन्ध है। साधु को गुरु की आशातना और जिनवचनों का विलोपन, हनन या व्याघात नहीं करना चाहिए।
दशम 'निदान' अध्ययन के आरम्भ में नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव निक्षेपों में से भाव निक्षेप द्वारा आयति का कथन करने का निर्देश है। द्रव्य निक्षेप से जाति या उत्पत्ति उत्पन्न द्रव्य का स्वभाव है जबकि भावनिक्षेप से यह उत्पत्ति रूप अनुभवन है। निदानकृत कर्मफल का भोग ओघ- सामान्य और विभाग दो प्रकार का बताया गया है। ओघ अनुभवन से अभिप्राय सांसारिक जीवों की उत्पत्ति और मरण है। विभाग अनुभवन
औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, पारिणामिक और सान्निपातिक छ: भाव रूप हैं। इसी क्रम में उत्पत्ति के तीन भेद बताये गये हैं- जाति, आजाति और प्रत्याजाति। सांसारिकों की नरकादि गतियों में उत्पत्ति जाति है। संमूर्छ, अगर्भ, उपपात आदि अन्य प्रकार से जन्म आजाति है। जिस भव से जीव च्युत हुआ है, उसी भव में जब उसका पुनर्जन्म होता है, वह प्रत्याजाति है और यह केवल मनुष्य और तिर्यंच को होता है।
इस अध्ययन में बन्थ का द्रव्य और भाव निक्षेप से वर्णन है। द्रव्य बन्ध दो प्रकार का होता है-प्रयोग बन्ध और विस्रसाबन्ध । प्रयोग बन्ध मूल और उत्तर दो प्रकार का होता है। मूलबन्ध के दो भेद होते हैं-शारीरिक और अशारीरिक। नूपुर या वेणी उत्तरबन्ध है। विरसा बन्ध सादिक और अनादिक दो प्रकार का है। निक्षेप की दृष्टि से भाव बन्ध जीव और अजीव दो प्रकार का होता है। ये दोनों भाव तीन-तीन प्रकार
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