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38 : श्रमण/अक्टूबर-दिसम्बर/१६६७
प्रथम ‘असमाधि अध्ययन में समाधि का द्रव्य और भाव की दृष्टि से तथा इसके २० अतिशयों या स्थानों का निर्देश है। समाधि-प्राप्ति में सहायक द्रव्य या वस्तु-विशेष द्रव्यसमाधि और प्रशस्त योग द्वारा प्राप्त होने वाली जीव की सुसमाहित अवस्था भाव समाधि है। समाधि की विपरीत अवस्था असमाधि है।
___ द्वितीय 'शबल अध्ययन' में शबल और शबलता अर्थात् चारित्र को दूषित करने वाले शिथिलाचारों का निर्देश है। चारित्र का दूषित होना या चारित्र पर दाग, धब्बा या कलंक लग जाना जैसे कि चितकबरा बैल आदि यह द्रव्य शबल है। शबलत्व में चारित्र सर्वथा दूषित नहीं होता बल्कि अंश रूप में भ्रष्ट होता है। जिसप्रकार कम या अधिक खण्डित घड़ा खण्डित ही कहा जायगा उसी प्रकार चारित्र की अंशतः विराधना, चाहे जिस भी मात्रा में हो, वह शबल विराधना कही जाती है।
तृतीय अध्ययन ‘आशातना' में इसके मिथ्याप्रतिपादन और मिथ्याप्रतिपत्तिलाभ दो भेद बताये गये हैं। पुनः इन दोनों का छ: निक्षेपों-नाम, स्थापना, द्रव्य, काल, क्षेत्र - और भाव से प्रतिपादन है। मिथ्याप्रतिपादन और मिथ्याप्रतिपत्तिलाभ आशातनाओं का द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव निक्षेप की दृष्टि से इष्ट और अनिष्ट रूप में भी निरूपण है। उदाहरणस्वरूप चोरों द्वारा हृत उपधि का साधु द्वारा पुर्नग्रहण अनिष्ट द्रव्याशातना तथा उद्गम, उत्पादन आदि दोषो से युक्त उपधि की साधु को प्राप्ति इष्ट द्रव्याशातना है। सचित आदि द्रव्यों का अरण्य आदि में प्राप्त होना अनिष्ट क्षेत्र और ग्रामादि में प्राप्त होना इष्ट क्षेत्र मिथ्याप्रतिपादन आशातना है। द्रव्यादि की दुर्भिक्ष में प्राप्ति अनिष्टकाल और सुभिक्ष में प्राप्ति इष्ट काल मिथ्याप्रतिपादन आशातना है। जो संयम और तप में तत्पर हों उनके विषय में वह नहीं करता है, अशक्य है या कम करता है, इसप्रकार अपनी उत्कृष्टता का कथन भावदृष्टि से मिथ्याप्रतिपादन आशातना है।
इसी प्रकार इष्ट और अनिष्ट मिथ्याप्रतिपत्ति आशातना का भी द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की दृष्टि से निरूपण है। प्राप्त द्रव्य का परिमाण उचित होने पर इष्ट, कम या अधिक होने पर अनिष्ट द्रव्य मिथ्याप्रतिपत्ति आशातना हैं। सम्यकूरूप से प्रदत्त द्रव्य इष्ट और असम्यक रूप से प्रदत्त द्रव्य अनिष्ट । द्रव्य की प्राप्ति और प्रदान सुक्षेत्र में हो तो इष्ट और विक्षेत्र में हो तो अनिष्ट मिथ्याप्रतिपत्ति आशातना है। औदयिक आदि छ: प्रकार के भावों के कारण भी मिथ्याप्रतिपत्ति आशातना छः प्रकार की होती है। उपसर्गों से भी अकस्मात् आशातना होती है।
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