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दशाश्रुतस्कंधनियुक्ति : अन्तरावलोकन : 37
मणिसम्पदा, शरीरसम्पदा, संग्रहपरिज्ञा, भिक्षु, स्थापना, मोह, जाति और बन्ध शब्दों के निक्षेप प्राप्त होते हैं। ज्ञात, पर्युषणा और मोह शब्दों के एकार्थक इस नियुक्ति में प्राप्त होते हैं। निरुक्त की दृष्टि से वह स्थल उद्धृत किया जा सकता है जहाँ श्रावक ही उपासक है श्रमण नहीं- इस तथ्य का निरूपण करते हुए कहा गया है-जिसके द्वारा सम्पूर्ण रूप से कार्य किया जाता है, वही कर्ता कहा जाता है।
जहाँ तक द० नि० में संकेतित दृष्टान्त कथाओं का प्रश्न है इसमें क्षमापना में कुम्भकार, उदायन चण्डप्रद्योत और चेट द्रमक का दृष्टान्त, चारों कषायों की दृष्टि से क्रोध में मरुक, मान में अत्यहंकारिणी भट्टा, माया में साध्वी पाण्डुरार्या का और लोभ में आर्यमगु का दृष्टान्त निर्दिष्ट है। द० नि० का प्रतिपाद्य
द० नि० में आदि मंगलाचरण के रूप में सम्पूर्ण श्रुतों के ज्ञाता, दशाश्रुत, कल्प और व्यवहार- इन छेदसूत्रों के कर्ता प्राचीनगोत्रीय भद्रबाहु की वन्दना की गई है। विषय-निरुपण का प्रारम्भ दशा के निक्षेप से किया गया है। द्रव्य-निक्षेप की दृष्टि से . दशा, वस्तु की अवस्था है तो भाव-निक्षेप की दृष्टि से जीवन की अवस्था। जीवन-अवस्था या आयु-विपाक के सन्दर्भ में सौ वर्ष की आयु को दस-दस वर्ष की दस दशाओं-अवस्थाओं में वर्गीकृत किया गया है। ये दस अवस्थायें हैं-बाला (एक से दस वर्ष), मन्दा (ग्यारह से बीस वर्ष), क्रीडा (२१-३० वर्ष), बाला (३१-४० वर्ष), प्रज्ञा (४१-५० वर्ष), हायनी (५१-६० वर्ष), प्रपंचा (६१-७० वर्ष), प्राग्भारा (७१-८० वर्ष), मन्मुखी (८१-६० वर्ष)
और शायनी (६१-१०० वर्ष)। अध्ययन से तात्पर्य शास्त्र-विभाग से है और प्रस्तुत ग्रन्थ में दशाश्रुतस्कन्ध के दस अध्ययनों असमाधि, शबल, आशातना, गणिगुण, मनःसमाथि, श्रावकप्रतिमा, भिक्षुप्रतिमा, पर्युषणाकल्प, मोह और निदान की क्रमशः नियुक्ति की गई है। इसके उक्त अध्ययन दृष्टिवाद आदि पूर्वो से उद्धृत हैं। आचार का ज्ञाताधर्म आदि छः अंगों में विस्तृत तथा दशाश्रुतस्कन्ध के इन अध्ययनों में संक्षिप्त निरूपण उपलब्ध होता है।
नियुक्ति की प्रस्तावना रूप आठ गाथाओं के पश्चात् असमाधि (गाथा ६-११), शबल (१२-१४), आशातना (१५-२४), गणिगुण या गणिसम्पदा (२४-३१), मनः समाधि (३२), श्रावकप्रतिमा (३३-४३), भिक्षप्रतिमा (४४-५१), पर्युषणाकल्प (५२-११८), मोह (११६-१२६) और निदान अध्ययन (१२७-१४१) की नियुक्ति की गई है।
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