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________________ 34 : श्रमण / अक्टूबर-दिसम्बर / १६६७ विकृति - ग्रहण का नियम बताया गया है। जैसा कि ऊपर उल्लिखित है द० नि० की ८२वीं गाथा के चारों चरण उक्त दोनों गाथाओं के क्रमश: प्रथम चरण ( ३१६६) और द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ चरण ( ३१७०) के समान हैं। इन दोनों गाथाओं का अंश निर्युक्ति में एक ही गाथा में कैसे समाहित यह विचारणीय है । विकृति के ही प्रसंग में अचित्त विकृति का प्ररूपण करने वाली ३१७५वीं गाथा भी प्रासंगिक है क्योंकि द० नि० में सचित्त विकृति का प्रतिपादन है परन्तु अचित्त विकृति के प्रतिपादन का अभाव असंगत प्रतीत होता है। अतः यह गाथा भी द० नि० का अंग रही होगी । यही स्थिति शेष दोनों गाथाओं ३१६२ और ३२०६ की भी है। इसप्रकार द० चू० में इन पाँच गाथाओं का विवेचन और विषय प्रतिपादन में तारतम्य द० नि० से इन गाथाओं के सम्बन्ध पर महत्त्वपूर्ण समस्या उपस्थित करती 1 द० नि० में प्रयुक्त छन्द ० नि० प्राकृत के मात्रिक छन्द गाथा में निबद्ध है । 'गाथा सामान्य' के रूप में जानी जाने वाली यह संस्कृत छन्द आर्या के समान है । छन्दोऽनुशासन की वृत्ति में उल्लिखित भी है- आर्येव संस्कृतेतर भाषासु गाथासंज्ञेति गाथालक्षणानि' अर्थात् संस्कृत का आर्या छन्द ही दूसरी भाषाओं में गाथा के रूप में जाना जाता है। दोनों 'गाथासामान्य' और आर्या के चारों चरणों को मिलाकर ५७ मात्रायें होती हैं। गाथा में चारों चरणों में मात्रा का विभाजन क्रमशः इसप्रकार है- १२, १८, १२ और १५ । इसप्रकार पूर्वार्द्ध के दोनों चरणों में ३० और उत्तरार्द्ध के दोनों चरणों में २७ मात्राएँ हैं । संस्कृत आर्या और प्राकृत 'गाथासामान्य' में अन्तर यह है कि अनिवार्य रूप से आर्या में ५७ मात्रायें ही होती हैं। इसमें कोई अपवाद नहीं हो सकता, जबकि गाथा में मात्रा ५७ से कम-अधिक भी हो सकती है, जैसे इसमें ५४ मात्राओं की गाहू, ६० मात्राओं की उद्गाथा और ६२ मात्राओं की गाहिनी भी पायी जाती है । मात्रावृत्तों की प्रमुख विशेषता यह है कि इसके प्रत्येक चरण में लघु या गुरु वर्ण का क्रम और उनकी संख्या नियत नहीं है। प्रत्येक गाथा में गुरु और लघु की संख्या में न्यूनाधिक्य के कारण 'गाथा सामान्य के बहुत से उपभेद हो जाते हैं 1 द० नि० में 'गाथा सामान्य' के प्रयोग का बाहुल्य है। कुछ Jain Education International For Private & Personal Use Only गाथायें गाहू उद्गार्थी www.jainelibrary.org
SR No.525032
Book TitleSramana 1997 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1997
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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