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दशाश्रुतस्कंधनिर्युक्ति : अन्तरावलोकन : 33
गंगाओं का योग भी ६६ ही होता है। वस्तुतः शुरू का ६ और हवें, दसवें क्रम पर उल्लिखित ६, ७, के मध्य विराम अनापेक्षित है। इसप्रकार ६ को गणना से पृथक् कर देने और ६, ७ के स्थान पर ६७ पाठ कर देने से अध्ययन संख्या दस और गाथा संख्या १४४ हो जाती है और कापडिया के उक्त दोनों विवरण एक रूप हो जाते हैं । इस नियुक्ति की गाथा सं० १४४ और १४१ के रूप में संख्या- भेद पाँचवें अध्ययन में क्रमशः चार (१४४) और एक (१४१) गाथा उल्लिखित होने के कारण है 1
द० नि० की गाथा सं० निर्धारित करने के क्रम में नि० भा० चू० का विवरण भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। प्रस्तुत नियुक्ति के आठवें 'पर्युषणाकल्प' अध्ययन की सभी गाथायें नि० भा० के दसवें उद्देशक में उसी क्रम से 'इमा णिज्जुत्ती १२ कहकर उदधृत हैं। निर्युक्ति के आठवें अध्ययन में ६७ गाथायें और नि० भा० के दसवें उद्देशक के सम्बद्ध अंश में ७२ गाथायें हैं। इस प्रकार नि० भा० में नियुक्ति गाथाओं के रूप में पाँच गाथायें अतिरिक्त हैं, जिनका वहाँ क्रमांक क्रमशः ३१५५, ३१७०, ३१७५, ३१६२ और ३२०६ है । इन अतिरिक्त गाथाओं का क्रमांक द० नि० में गाथा ६८, ८२, ८६,११८, एवं १०६ के बाद आता है।
द० चू० (भावनगर) में ऊपर उल्लिखित गाथा सं० ६८ एवं ८६ की चूर्णि में, नि० भा० चू० में उपलब्ध गाथा सं० ३१५५ और ३१७५ की चूर्णि का विवरण भी प्राप्त होता है । द० नि० की गाथा सं० ८२ का प्रथम और शेष तीनों चरण नि० भा० चू० की ३१६६ और ३१७० दोनों गाथाओं में उपलब्ध हैं । फलतः द० चू० में भी ८२ की चूर्णि, में नि० भा० चू० की दोनों गाथाओं की चूर्णियों का समन्वित रूप मिलता है । परन्तु गाथा सं० १०१ की चूर्णि के साथ नि० भा० गाथा ३१६२ की चूर्णि और ११८ की चूर्णि के साथ नि० भा० गाथा ३२०६ की चूर्णि द० चू० में प्राप्त नहीं होती
है |
इन गाथाओं का विषय - प्रतिपादन की दृष्टि से भी महत्त्व है । नि० भा० गाथा सं० ३१५४ एवं द० नि० गाथा ६८ में श्रमणों के सामान्य चातुर्मास (१२० दिन) के अतिरिक्त न्यूनाधिक चातुर्मास की अवधि का वर्णन है। उसमें ७० दिन के जघन्य ( सबसे कम स्थिति) वर्षावास का उल्लेख है । ३१५५वीं गाथा में ७० दिन का वर्षावास किन स्थितियों में होता है यह बताया गया है, जो बिल्कुल प्रासङ्गिक है ।
गाथा सं० ३१६६ और ३१७० में श्रमणों द्वारा आहार ग्रहण के क्रम में
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