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दशाश्रुतस्कंधनियुक्ति : अन्तरावलोकन : 35
और गाहिनी में भी रचित हैं। सामान्य लक्षण वाली गाथाओं (५७ मात्रा) में बुद्धि, लज्जा, विद्या, क्षमा, देही, गौरी, धात्री, चूर्णा, छाया, कान्ति और महामाया का प्रयोग हुआ है। विभिन्न गाथावृत्तों में निबद्ध श्लोकों की संख्या इस प्रकार है- बुद्धि-१, लज्जा-४, विद्या-११, क्षमा-६, देही-२८, गौरी-२२, धात्री-२३, चूर्णा-१५, छाया-८, कान्ति-३, महामाया-३, उद्गाथा-६, और अन्य-४ ।
सभी गाथाओं में यथास्थिति में ही छन्द-लक्षण घटित नहीं हो जाते हैं। दूसरे शब्दों में सभी गाथायें छन्द की दृष्टि से शुद्ध हैं या निर्दोष हैं, ऐसी बात नहीं है। नियुक्ति संरचना
नियुक्ति के संरचनात्मक स्वरूप को प्रकाशित करने वाली दशवैकालिक नियुक्ति की निम्न गाथायें१४
निक्खेवेगट्ठनिरुत्तविही पवित्ती य केण वा कस्स? तद्दारभेयलक्खण तयरिहपरिसा य सुत्तत्थो।।५।।
एवं
भिक्खुस्स य निक्खेवो निस्तएगट्ठिआणि लिंगाणि।
अगुणट्ठिओ न भिक्खू अवयवा पंच दाराई।।३३२ ।। निर्यक्ति साहित्य की संरचना या नियुक्ति के अवयवों या घटकों पर कुछ सीमा तक प्रकाश डालती हैं। जहाँ तक नियुक्ति साहित्य की संरचना को समग्र रूप से अभिव्यक्त करने का प्रश्न है तो अभी तक कोई प्राचीन उल्लेख हमारे समक्ष नहीं आया है। प्रो० कापडिया ने भी इसी तथ्य को इंगित करते हुए कहा है-"In order that its nature may completely realised, it is necessary to tap another source wherein there is a specific mention of atleast its constituents." फिर भी हम दश० नि० की गाथाओं के आलोक में कह सकते हैं कि निक्षेप, एकार्थ एवं निरुक्त नियुक्ति साहित्य के घटक के रूप में प्राचीन साहित्य में भी वर्णित हैं। इसके अतिरिक्त दृष्टान्त कथाओं का संकेत भी पर्याप्त मात्रा में नियुक्तियों में दृष्टिगोचर होता
है।
नियुक्ति साहित्य की संरचना में उक्त चारों घटकों-निक्षेप, एकार्थ, निरुक्त और दृष्टान्त की महत्ता एवं स्वरूप के सम्बन्ध में आधुनिक भारतीय एवं विदेशी विद्वानों
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