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जैन आगमों की मूल भाषा : अर्धमागधी या शौरसेनी : 27
महाराष्ट्री से प्राचीन भी है। यदि श्वेताम्बर आगम शौरसेनी से महाराष्ट्री जिसे दिगम्बर विद्वान् भ्रांति से अर्धमागधी कह रहे हैं, बदले गये तो फिर उनकी प्राचीन प्रतियों में 'त' श्रुति के स्थान पर 'द' श्रुति के पाठ क्यों उपलब्ध नहीं होते हैं जो शौरसेनी की विशेषता है। इस प्रसंग में डॉ० टॉटियाजी के नाम से यह भी कहा गया है कि आज भी आचारांगसूत्र आदि की प्राचीन प्रतियों में शौरसेनी के शब्दों की प्रचुरता मिलती है। मैं आदरणीय टॉटियाजी से और भाई सुदीपजी से साग्रह निवेदन करूंगा की वे आचारांग, ऋषिभाषित, सूत्रकृतांग आदि की किन्हीं भी प्राचीन प्रतियों में 'द' श्रुति प्रधान पाठ दिखला दें। प्राचीन प्रतियों में जो पाठ मिल रहे हैं, वे अर्धमागधी या आर्ष प्राकृत के हैं, न कि शौरसेनी के। यह एक अलग बात है कि कुछ शब्दरूप आर्ष अर्धमागधी और शौरसेनी में समान हैं।
वस्तुतः इन प्राचीन प्रतियों में न तो 'द' श्रति देखी जाती है और न "न" के स्थान पर “ण” की प्रवृत्ति देखी जाती है, जिसे व्याकरण में शौरसेनी की विशेषता कहा जाता है। सत्य तो यह है कि अर्धमागधी आगमों का ही शौरसेनी रूपान्तरण हुआ है न कि शौरसेनी आगमों का अर्धमागधी रूपान्तरण । यह सत्य है कि न केवल अर्धमागधी आगमों पर अपितु शौरसेनी आगमतुल्य कुन्दकुन्द आदि के ग्रन्थों पर भी महाराष्ट्री की 'य' श्रुति का स्पष्ट प्रभाव हैं जिसे हम पूर्व में सिद्ध कर चुके हैं।
क्या पन्द्रह सौ वर्ष पूर्व अर्धमागधी भाषा एवं श्वेताम्बर अर्धमागधी आगमों का अस्तित्त्व नहीं था?
डॉ० सुदीपजी द्वारा टॉटियाजी के नाम से उद्धृत यह कथन कि १५०० वर्ष पहले अर्धमागधी भाषा का अस्तित्त्व ही नहीं था' पूर्णतः भ्रान्त है। आचारांग, सूत्रकृतांग, ऋषिभाषित जैसे आगमों को पाश्चात्य विद्वानों ने एक स्वर से ई०पू० तीसरी-चौथी शताब्दी या उससे भी पहले का माना है। क्या उस समय ये आगम अर्धमागधी भाषा में निबद्ध न होकर शौरसेनी में निबद्ध थे। ज्ञातव्य है कि 'द' श्रुति प्रधान और 'ण' कार की प्रवृत्ति वाली शौरसेनी का जन्म तो उस समय हुआ ही नहीं था अन्यथा अशोक के अभिलेखों में और मथुरा (जो शौरसेनी की जन्म भूमि है) के अभिलेखों में कहीं तो इस शौरसेनी के वैशिष्ट्य वाले शब्दरूप उपलब्ध होने चाहिए थे? क्या शौरसेनी प्राकृत में निबद्ध ऐसा एक भी ग्रन्थ है जो ई०पू० में रचा गया हो? सत्य तो यह है कि भास (ईसा की दूसरी शती) के नाटकों के अतिरिक्त ईसा की चौथी-पॉचवीं शताब्दी के पूर्व शौरसेनी में निबद्ध एक भी ग्रन्थ नहीं था। जबकि मागधी के अभिलेख और अर्धमागधी के आगम ई०पू०
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