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________________ जैन आगमों की मूल भाषा : अर्धमागधी या शौरसेनी : 13 यह कथन सत्य है कि अर्धमागधी में नकार और णकार दोनों पाये जाते हैं। किन्तु दिगम्बर शौरसेनी आगमतुल्य ग्रन्थों में सर्वत्र णकार का पाया जाना यही सिद्ध करता है कि जिस शौरसेनी को आप अरिष्टनेमि के काल से प्रचलित प्राचीनतम् प्राकृत कहना चाहते हैं, उस णकार प्रधान शौरसेनी का जन्म तो ईसा की तीसरी शताब्दी तक हुआ भी नहीं था। “ण” की अपेक्षा न का प्रयोग प्राचीन है। ई०पू० तृतीय शती के अशोक के अभिलेख एवं ई०पू० द्वितीय शती के खारवेल के शिलालेख से लेकर मथुरा के शिलालेख (ई०पू० दूसरी शती से ईसा की दूसरी शती तक) इन लगभग ८० जैन शिलालेखों में एक भी णकार का प्रयोग नहीं है। इनमें शौरसेनी प्राकृत के रूपों यथा “णमों” “अरिहंताणं" और “णमों वड्ढमाणं" का सर्वथा अभाव है। यहाँ हम केवल उन्हीं प्राचीन शिलालेखों को उद्धधृत कर रहे हैं, जिनमें इन शब्दों का प्रयोग हुआ है:- ज्ञातव्य है कि ये सभी अभिलेखीय साक्ष्य जैन शिलालेख संग्रह, भाग २ से प्रस्तुत हैं, जो दिगम्बर जैन समाज द्वारा ही प्रकाशित हैं:०१. हाथीगुफा बिहार का शिलालेख- प्राकृत, जैन सम्राट खारवेल, मौर्यकाल १६५ वॉ वर्ष पृ० ४ लेख क्रमांक २- नमो अरहंतानं, नमो सवसिधानं ०२. वैकुण्ठ स्वर्गपुरी गुफा, उदयगिरि, बिहार, -प्राकृत, मौर्यकाल १६५ वाँ वर्ष लगभग ई०पू० दूसरी शती पृ०११ ले०क्र० 'अरहन्तपसादन' । ०३. मथुरा, प्राकृत, महाक्षत्रप शोडाशके ८१ वर्ष का पृ० १२ क्रमांक ५, नम अरहतो वधमानस' ०४. मथुरा, प्राकृत काल निर्देश नहीं दिया है, किन्तु जे०एफ० फलीट के अनुसार लगभग १४-१३ ई०पूर्व का होना चाहिए पृ०१५ क्रमांक ८ मो ‘अरहतो वर्धमानस्य'। ०६. मथुरा प्राकृत सम्भवतः १४-१३ ई०पू० प्रथमशती पृ०१५ लेख क्रमांक १०, मा अरहतपूजा' ०७. मथुरा प्राकृत पृ०१७ क्रमांक १४ 'मा अहतानं श्रमणश्रविका' ०८. मथुरा प्राकृत पृ०१७ क्रमांक १५ 'नमो अरहंतानं' ०६. मथुरा प्राकृत पृ०१८ क्रमांक १६ 'नमो अरहतो महाविरस' १०. मथुरा, प्राकृत हुविष्क संवत ३६- हस्तिस्तम्भ पृ०३४, क्रमांक ४३ ‘अयर्येन रुद्रदासेन' अरहतनं पुजाये। ११. मथुरा प्राकृत भग्न वर्ष ६३ पृ०४६ क्रमांक ६७ 'नमो अर्हतो महाविरस्य' १२. मथुरा, प्राकृत वासुदेव सं०६८ पृ०४७ क्रमांक ६० 'नमो अरहतो महावीरस्य' १३. मथुरा, प्राकृत पृ०४८ क्रमांक ७१-नमो अरहंतानं सिहकसं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525032
Book TitleSramana 1997 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1997
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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