SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रमण/जुलाई-सितम्बर/१९९७ : ५९ तिनके पुत्र लालजी भये, धर्मवंत गुणधर निर्मये ।। तिनके पुत्र भगवतीदास, जिन यह कीन्हों "ब्रह्मविलास' ।। आपकी रचनाओं से ऐसा प्रतीत होता है कि आगरा के ही तत्कालीन, सुप्रसिद्ध विद्वान् महाकवि बनारसीदास के आप निकट सम्पर्क में रहे हैं । संभवत: आप उनके विद्वान् शिष्यों में से प्रमुख शिष्य रहे होगें । पं० बनारसीदास के समय आगरा जैनविद्वानों का केन्द्र था। उस समय पं० बनारसीदास, पं० रामचन्द्र जी, चतुर्भुज वैरागी, भगवतीदास, मानसिंह, धर्मदास, कुंवरपाल और जगजीवनराम-इन विद्वान कवियों की अच्छी मण्डली थी ।(२) ___ पं० बनारसीदास के निकट सम्पर्क में होने के कारण आपने आचार्य कुन्दकुन्द कृत समयसार, आ० गुणभद्रकृत आत्मानुशासन, सिद्धान्त चक्रवर्ती नेमिचन्द्राचार्य विरचित गोम्मटसार, सिद्धान्तीदेव नेमिचन्द्र कृत द्रव्यसंग्रह आदि सिद्धान्त ग्रन्थों का गहन अध्ययन किया था । ब्रह्मविलास में संगृहीत आपकी काव्य रचनाओं पर इन ग्रन्थों का स्पष्ट प्रभाव है । इसमें संकलित प्राकृत द्रव्यसंग्रह ग्रंथ का कवित्तबद्ध हिन्दी अनुवाद तो प्रमुख रचनाओं में से एक है । ब्रह्मविलास लगभग ७१ वर्ष पूर्व प्रकाशित हुआ था, किन्तु आजकल अनुपलब्ध है। प्रस्तुत सम्पादन कार्य में इस ब्रह्मविलास में संकलित ‘पंचेन्द्रिय संवाद' को' 'ब' प्रति के रूप में तथा पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी में सुरक्षित हस्तलिखित ग्रन्थ को 'अ' प्रति के रूप में उपयोग के साथ सम्पादन का कार्य किया गया है। दोनों प्रतियों में पर्याप्त पाठभेद तो हैं ही, 'ब' प्रति में अनेक अशुद्धियाँ भी थीं । इन सबका मिलान एवं पाठभेद निर्धारण पूर्वक इस महत्त्वपूर्ण कृति का सम्पादन करके इस रूप में इसे यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है । ___ हस्तलिखित पाण्डुलिपि का परिचय- ‘पंचेन्द्रिय संवाद' नामक इस लघुग्रंथ की पाण्डुलिपि पार्श्वनाथ विद्यापीठ के पुस्तकालय में संरक्षित है । इसके रचयिता 'ब्रह्मविलास' नामक सुप्रसिद्ध हिन्दी ग्रन्थ के लेखक भैया भगवतीदास जी हैं । प्रस्तुत प्रतिलिपि पं० गोविंद ओसवाल द्वारा संवत् १९१० में की गई है । इस १. ब्रह्मविलास के अन्त में ग्रन्थकर्ता परिचय के रूप में प्रस्तुत चौपाई में कहा है २. ब्रह्मविलास, पृ० ३०५ ३. हिन्दी जैन साहित्य परिशीलन - भाग १, डॉ० नेमिचन्द्रशास्त्री, पृ. २४५. भारतीय ज्ञानपीठ काशी, सन् १९५६ ४. ब्रह्मविलास - संशोधक पं० वंशीधर जी न्यायतीर्थ प्रकाशक -पन्नालाल वाकलीवाल, जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय, चंदावाड़ी, बम्बई, द्वितीय संस्करण सन् १९२६, (प्रथम सं० सन् १९०४) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525031
Book TitleSramana 1997 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1997
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy