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________________ श्रमण / जुलाई-सितम्बर/ १९९७ : १३३ सहित उपलब्ध नहीं है, सामग्री को सुलभ कराने में इस कोश की महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी । इस कोश की यह भी विशेषता है कि इसमें जिस भी विषय को ग्रहण किया गया है, उसके सभी पक्षों को सम्यक् रूप से प्रतिपादित किया गया है । प्रस्तुत कोश में तीर्थंकर का ३१, कर्म का ३४, श्रुतज्ञान का २७ और अवधिज्ञान का २५ शीर्षकों का माध्यम से प्रतिपादन किया गया है । जीवन-वृत्त आदि से सम्बन्धित आकड़ों के यन्त्र भी कोश में संलग्न हैं तथा कहींकहीं स्थापनाओं और चित्रों का भी उपयोग हुआ है । कोश के अन्त में दो परिशिष्ट हैं । प्रथम परिशिष्ट में पाँचों आगम ग्रन्थों और उनकी व्याख्याओं में उपलब्ध ५०० कथाओं के ससन्दर्भ सङ्केत है । द्वितीय परिशिष्ट में उक्त आगमों एवं उनके व्याख्याओं में विश्लेषित दार्शनिक और तात्त्विक चर्चास्थलों का ससन्दर्भ सङ्केत हैं । श्री भिक्षु आगम विषय कोश का प्रथम भाग उत्कृष्ट विषय प्रस्तुतीकरण के साथ-साथ कलेवर, साज-सज्जा एवं प्रकाशन की दृष्टि से उच्चस्तरीय है । प्रस्तुत कोश के आगामी भागों का विद्वत्समाज उत्सुकता से प्रतीक्षा करेगा । डॉ० अशोक कुमार सिंह अणुओगदाराइं वाचनाप्रमुख, गणाधिपति तुलसी, संपा०, आचार्य महाप्रज्ञ, प्रकाशक- जैन विश्वभारती संस्थान, लाडनूं, प्रथम संस्करण, १९९० पृष्ठ संख्या ४३१, मूल्य - ४००/ रु० जैन आगम साहित्य के दो चूलिका सूत्रों, जिन्हें आगम साहित्य के हृदयस्थानीय अथवा शिरः स्थानीयसूत्र भी कहा जाता है, में अनुयोगद्वारसूत्र का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है । आर्यरक्षित द्वारा रचित २१६२ गाथा परिमाम यह सूत्र मुख्यतः गद्य में रचित है । सम्पूर्ण ग्रन्थ को १३ प्रकरणों में विभक्त किया गया है। प्रथम प्रकरण में आवश्यक को निक्षेप पद्धति से अत्यन्त सहज ढंग से समझाया गया है। आवश्यकतानुसार इसमें निक्षेप के नियम आदि भी प्रदर्शित किए गये हैं । दूसरे प्रकरण में श्रुत और स्कंध के निक्षेप की विस्तृत चर्चा करते हुए यह बताया गया है कि निक्षेप पद्धति ग्रन्थकार के मौलिक प्रतिपाद्य के अर्थ को स्पष्ट करने का प्रयास करती है। तीसरे प्रकरण में शास्त्र से परिचित होने के लिए उपक्रम अथवा उपोद्घात की आवश्यकता पर बल देते हुए उपक्रम के छः निक्षेप प्रदर्शित किये गये है । चौथे प्रकरण में उपक्रम और आनुपूर्वी के दस प्रकारों की चर्चा की गयी है । इस प्रकरण में नामानुपूर्वी, स्थापनानुपूर्वी एवं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525031
Book TitleSramana 1997 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1997
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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