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________________ श्रमण/जुलाई-सितम्बर/१९९७ : १२९ पार्श्वनाथ विद्यापीठ का अभिनवतम वैज्ञानिक प्रकाशन साइन्टिफिक कन्टेन्ट्स इन प्राकृत कैनन्स (अंग्रेजी), लेखक- डॉ. नन्दलाल जैन, पृष्ठ संख्या ५८४, मूल्य रु० २००, (पेपर बैक, रु० ३०० (हार्डबाउन्ड) १९९६ विद्यापीठ से प्रकाशित होने वाले शोधपरक ग्रन्थों की श्रृंखला में जैन विद्या के वैज्ञानिक पक्षों का तुलनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत करने वाला यह अभिनवतम ग्रन्थ है। यह ग्रन्थ विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की शोध-योजना के अन्तर्गत 'प्राकृत आगमों में उपलब्ध वैज्ञानिक मान्यताओं' पर डॉ. नन्दलाल जैन द्वारा किये गये शोध का परिणाम है । प्रस्तुत ग्रन्थ में प्राकृत आगमों में उपलब्ध भौतिकी, रसायन, वनस्पतिशास्त्र, प्राणिशास्त्र, आहारविज्ञान और चिकित्सा विज्ञान से सम्बन्धित वैज्ञानिक मान्यताओं का विवरण प्रस्तुत किया गया है । इस पुस्तक में १७ अध्याय, १२९ सारिणी, ८८० सन्दर्भ एवं ५ चित्र हैं । तीस उदाहरण देकर वैज्ञानिक मान्यताओं के समान धार्मिक मान्यताओं की परिवर्धनीयता का संकेत दिया गया है। सोदाहरण यह भी बताया गया है कि अनेक जैन मान्यताएँ सैद्धान्तिक दृष्टि से समसामयिकत: श्रेष्ठतर हैं और उनके भौतिक विवरणों को आधुनिक वैज्ञानिक अन्वेषणों ने पूरकता प्रदान की है। इस ग्रंथ से ग्रंथलेखन की नयी विधा और दृष्टि का तो सूत्रपात होगा ही अनेक शोध दिशाएं भी प्रस्फुटित होगी । इस ग्रन्थ का अनौपचारिक विमोचन जैन एकेडेमिक फाउंडेशन ऑफ नार्थ अमेरिका की सिनसिनाटी की बैठक में किया गया, जहाँ उपस्थित अनेक देशों के जैन विद्या मनीषियों ने इस प्रकाशन की प्रशंसा की । यह ग्रंथ जैनविद्या के विद्यार्थियों, शोधार्थियों, विद्वानों एवं जिज्ञासुओं के लिए पठनीय एवं संग्रहणीय है। पार्श्वनाथ विद्यापीठ की इस महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ के प्रणयन के लिए लेखक को बधाई । डॉ. श्रीप्रकाश पाण्डेय, प्रवक्ता - जैन विद्या विभाग, पार्श्वनाथ विद्यापीठ । व्यवहारभाष्य-संघदासगणि विरचित; संपादिका - श्रमणी कुसुमप्रज्ञा प्रकाशकजैनविश्वभारती, लाडनें ; (राजस्थान); प्रथम संस्करण १९९६ ई० साइज-डबल डिमाई; पृष्ठ १४२+४४६+२६३, मूल्य-७०० रुपये __ जैन मुनि की आचारचर्या और प्रायश्चित्त सम्बन्धी अर्धमागधी साहित्य में छेदसूत्रों का विशिष्ट स्थान है । इन छेदसूत्रों के रचयिता आचार्य भद्रबाहु (प्रथम) माने जाते हैं । यद्यपि छेद सूत्रों में आचार के नियमों और उनका उल्लंघन करने पर दिये जाने वाले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525031
Book TitleSramana 1997 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1997
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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